फिर भी तुम नहीं लिख सके
नहीं पहुँच सके वहां
नहीं पहुँच सके वहां
जहां गर्दन पर
नली के ठीक ऊपर
सांस के आरोह-अवरोह के बीच
तेज़ और चमकदार धार रखी है
नली के ठीक ऊपर
सांस के आरोह-अवरोह के बीच
तेज़ और चमकदार धार रखी है
धूप की तरह उजली
और गर्म
और गर्म
उस वक़्त कहीं नहीं होती हैं आँखेँ
बैगेर लड़खड़ाए
कुछ ही क्षण में
रक्त अख्तियार कर लेता है खंजर
कुछ ही क्षण में
रक्त अख्तियार कर लेता है खंजर
पृथ्वी ने भी देखा
वह दृश्य लाल अपनी छाती पर
वह दृश्य लाल अपनी छाती पर
फिर भी तुम नहीं लिख सके
नहीं पहुँच सके वहां
नहीं पहुँच सके वहां
जहाँ रुदन था अंतिम
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