Sunday, September 25, 2016

सितंबर

सारी लड़कियां सितंबर में पैदा नहीं होती 
इसलिए उनके पास स्कार्फ़ नहीं होता 

बालों में भीनी- गहरी ख़ुश्बू भी नहीं
आंखों में खार
दिल में ख़्याल
बे- ख़्याल ऐसा नहीं होता 

जहां सड़कें और पहियें रोज मिले
रोज जियें, रोज मरे 
यात्राओं के बगैर रहने वाले
एबॉन्डन रेलवे स्टेशनों की तरह 
उन लड़कियों के शहर
ऐसे नहीं होते 
दुनिया के आखिरी शहरों की तरह 

दरगाह का इत्र महके जहां
दोपहरें और शामें
कभी इतनी सख़्त
कभी इतनी नर्म नही होती 

अब रातों में कहाँ उतनी रातें
अंधेरों के पास नहीं अंधेरा घना

मैंने अपने हाथ में कभी इतनी अर्जियां नहीं रखीं
और पैरों में लम्बे इंतज़ार नहीं पाले 

मैं अकेले में इतना मुस्कुराया नहीं
इतना रोया भी नहीं कभी 

सारी लड़कियां सितंबर में पैदा नहीं होती
इसलिए उनके पास स्कार्फ़ नहीं होता 

बालों में भीनी- गहरी ख़ुश्बू भी नहीं 
आंखों में खार
दिल में ख़्याल
बे- ख़्याल ऐसा नहीं होता 

उनके पास एक गली
कुछ सड़कें और कुछ इमारतें नहीं होती 

सारी लड़कियों के पास
मीठा नीम शरीफ़ की पत्तियां नहीं होती 

फिर एक दिन उसने
मेरे हाथ पर एक शहर का नाम कुरेद दिया
तब से मेरे पास दो शहर हैं
और दो ख़्याल भी
एक उसका
और दूसरा भी उसी का 

बहुत सालों बाद
जब हम
हम मतलब 'हम दोनों'
मर जाएंगे 
जब उम्र तुम्हारी कमर पर झुकने लगेगी
तब सितंबर की ऐसी ही किसी रात में
मैं बारिश से तुम्हारी उम्र पूछूंगा 
और इन सभी बीते सालों से
पूछूंगा मेरी आह का असर 

तब आख़िरी सांस के पहले
एक हिचकी लूंगा
फिर तुम्हारा नाम

इस तरफ सरकती
धीमी और ठंडी मौत से पहले
कोशिश करूंगा जानने की 
प्यार मैं कौन था
मैं या तुम.

Sunday, September 18, 2016

जहाँ रुदन था अंतिम

फिर भी तुम नहीं लिख सके
नहीं पहुँच सके वहां
जहां गर्दन पर
नली के ठीक ऊपर
सांस के आरोह-अवरोह के बीच
तेज़ और चमकदार धार रखी है
धूप की तरह उजली
और गर्म
उस वक़्त कहीं नहीं होती हैं आँखेँ
बैगेर लड़खड़ाए
कुछ ही क्षण में
रक्त अख्तियार कर लेता है खंजर
पृथ्वी ने भी देखा
वह दृश्य लाल अपनी छाती पर
फिर भी तुम नहीं लिख सके
नहीं पहुँच सके वहां
जहाँ रुदन था अंतिम