Saturday, July 10, 2010

आधे - आधे हम दोनो और एक जिंदगी .

नापी है कई गलिया और सड़कें
दिन मै , रात मै और दोपहरो मै
कोहरे को चीरते
चांदनी मै नहाएँ
हम दोनो .

देर तक और दूर तक
चलते रहते
उजाले से बेखबर
स्याह रात से निडर
जिंदगी की बातें करते
मजाक उड़ाते उसका
हम दोनो .

धुआँ निगलते
और उगलते
चलते रहते
हम दोनो .

उन दिनों
हम चलते रहते
जीते रहते
कई जिंदगीया एक साथ .

वक्त अब नही है वो
ना ही शहर मुनासिब ये
लेकिन जिंदा है
माचिस की कई गीली तिलिया
जलने को तैयार
सड़कों पर बिखरी पड़ी है .

चमक रहे है अभी भी सड़कों पर
सिगरेट के फेंके हुए कई ठुठ .

चिपकी हुई है चाशनी
चाय के उन गिलासो मै .

कानो मै घुल रहा है
होटलों मै बजता वो संगीत .

जिंदा है यह सब अभी भी
उन धड़कती गलियों
सांस लेती सड़कों
और शोर मचाते
उन चौराहो की तरह
जिन पर जीते थे
आधे - आधे हम दोनो
और एक जिंदगी .