Wednesday, October 12, 2016

उंगलियां

उसकी आखों के जीने से
भीगकर
उतरकर आया
अमावस्य का पूरा दिन

दृश्य- अदृश्य
छाया और रौशनी
नदी के ठंडे किनारे
उँगलियों के पोर उसके
बर्फ की परतों से हाथ

पूरी हथेलियों का होना हथेलियों में
पूरी उँगलियों का होना उँगलियों में
उलझना, खुलना,
खुलते जाना

फिर जीना उनका
हमने
हम दोनों ने
एक घर बनाया
धागे बुने
हाथ जोड़े
प्रार्थनाएं की
गोल- गोल घेरे बनाए
अंगूठियों की तरह घूमी पृथ्वी
उसके मन के फेरे लगाए
उँगलियों में उलझकर
सुलझ गई नियति
उसके कंधों पर थमी
तो आसान हो गई जिंदगी।

अक्टूबर 12, 2015