Friday, May 22, 2009

बेसुर भीड़




कानों मे पिघलने लगती है ध्वनियाँ


तबला... तानपुरा...




बिलखने लगते है कई घराने


साधते रहे जो सुरों को उम्रभर




मै गुजार देता हूँ सारे पहर इन्टरनेट पर


और डाउनलोड कर लेता हूँ कई राग


भैरवी


आसावरी


खमाज


साँस बस चल रही है


मै ख़याल और ठुमरी जी रहा हूँ




कबीर हो जाता हूँ कभी


कुमार गन्धर्व आ जाते है जब


"उड़ जायेगा हंस अकेला


जग दर्शन का मैला "




ख़याल फूटकर तड़पने लगता है


बनारस की सडकों पर


पं छन्नूलाल मिश्र


"मोरे बलमा अजहूँ न आए "




छलक पड़ती है गजल


रिसने लगती है कानों से


"रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ"




यह अलग बात है की तुम अभी भी


वेंटिलेटर पर सुर साध रहे हो मेहदी हसन।




गन्धर्व का घराना भटकता है सडकों पर


देवास


भोपाल


होशंगाबाद


मुकुल शिवपुत्र


किसी अज्ञात सुर की तलाश मै


इस बेसुरी भीड़ के बीच ...