और कितना सच है यह
कि अब तुम नही रहे .

और कितना झूठा हूँ मै
कि तुम्हे श्रद्धांजलि देने के लिए
किताब उठाकर तुम्हारी
माथे से लगाता हूँ अपने .
और मरने के बाद तुम्हारे
पढ़ना चाहता हूँ कहानी तुम्हारी .
कितना अजीब है यह समय
तुम्हारे ना रहने पर
और अधिक पढ़े जाते हो तुम .
बिस्मिल्लाह की शहनाई
संगत करने लग जाती है लहरों के साथ
गंगा के तट पर .
ऋषिकेश मुखर्जी जब विदा होते है
हर आदमी बन जाता है
आनंद और बाबू मुशाय .
कानों को अच्छे लगने लगते है
सुर और धुने नौशाद की .
सारे किरदार जीवंत हो उठते है
अभिव्यक्ति के लिए
दुनिया के रंग-मंच पर
जब किसी रंगकर्मी के जीवन का
परदा गिर जाता है हमेशा के लिए .
क्या जिंदा रहने से
महत्व घट जाता है
या मर जाना होता है महत्वपूर्ण ...?