- खेतों में बीज बो कर धान उगाने वाला अन्नदाता अन्न की बर्बाद नहीं कर सकता. वो अन्न का एक दाना भी अपने पैरों के नीचे नहीं आने देता है. किसानों की आड़ में एक अदृश्य अराजक अपने काम को अंजाम दे रहा है. - और अगर मैं गलत हूं- वो किसान ही है जो सड़कों पर अन्न बर्बाद कर रहा है, तो फिर वो निश्चित रू प से अराजक हो चुका है, जो पहले कभी नहीं रहा.
- और यह लालबहादूर शास्त्री का किसान तो बिल्कुल भी नहीं है.
मैंने अपने आसपास ऐसे किसान देखे हैं, जो अपने खेत, खलिहान और घर के आसपास बिखरे अनाज के दानों को बिन-बिनकर ढेर सारा अनाज इकठ्ठा कर लेते हैं. जिस जगह आपको एक दाना नजर नहीं आएगा, वहां से बैठे-बैठे वे कई किलो धान इकठ्ठा कर लेते हैं. इस प्रैक्टिस से उनकी कमर झुक जाती है, ज्यादातर किसान अपने बुढ़ापे में झुककर ही चलते नजर आते हैं. अन्न की इस कदर कद्र करने वाला कोई किसान तो क्या, कोई अन्य आदमी भी
अन्न के प्रति इतना रोष नहीं रखेगा.
पानी के टोटे और बिजली की कटौती में रात-रातभर जागकर हल जोतने वाला किसान अपना धान और दूध सड़कों पर नहीं उड़ेलता. वो जानवरों को नहीं मारता, पक्षियों को गोली नहीं मारता. अपने खेतों की फसल को पक्षियों से बचाने के लिए भी वो आदमीनुमा एफिजी का इस्तेमाल करता है. कभी किसी ट्रेन से गुजरते हुए तुमने देखा होगा जीजस क्राइस्ट पक्षियों को डराते हुए खेतों में खड़ा रहता है.
किसान और किसानों की स्थिति को समझने के लिए एक पूरा वर्ग जिस दयाभाव का इस्तेमाल कर रहा है, किसान वैसा नहीं है. वो अपने खेतों को खून से सींचकर अनाज उगाता है. अपना पेट खुद पालता है. इसके विरुद्ध आप और हम उसके धान पर पल रहे हैं. आपकी तरह उसका जीवन चाकरी पर नहीं, वह अपने अरण्य का मालिक है. इसलिए उसे आपके दयाभाव की कतई जरुरज नहीं है.

- तो फिर कौन सा किसान इसमें शामिल है. जिसे आप किसान कह रहे हो और मान रहे हो. दरअसल, वह बड़ी दूध डेयरियों का मालिक है. वे सब्जी मंडियों के ठेकेदार हैं. उन्नत खेती के जरिये जो कई हैक्टेयर्स में सब्जियां उगाता है. जिनके पास हैक्टेयर्स में जमीनें हैं, जो अनाज मंडियों के नेता है, पदाधिकारी है. ये साहूकार है, जो धुप में सूख चुकी चमड़ी, पतली टांगों और और पिचके हुए पेट वाले किसानों को अपनी जमीन अदीने पर देते हैं. किसान और मजदूर के बीच का जीवन जीने वाला गरीब आदमी जिनकी जमीनों पर गैहूं, चना और सोयाबीन उगाता है. यह वह व्यापारी है, जिसने ‘अन्नदाता’ शब्द भी भारत के असल किसान से छीन लिया. अब अन्नदाता उसको कहा जाता है, जो गांवों में गरीबों को ब्याज पर बीज देकर उसका खून चूसता है, बीज देने से पहले ही वो धूप में सिकी चमड़ी उतार लेता है। इन सब के बाद भी वो गरीब खेत में बेल की तरह नजर आता है.
आप उसे किसान समझ रहे हैं, जिसने सरकार से कर्ज लेकर चार- चार ट्रैक्टर अपने घर के सामने खड़े कर लिए. नेशनल हाइवेज के पास से गुजरने वाली जमीन जिसने सरकार को करोड़ों रुपए में बेची है, जिसकी कीमत हाइवे बनने- गुजरने से पहले हजारों भी नहीं थी. जिनको सरकारी उपक्रम लगाने के लिए अपनी जमीन के बदले सरकार से करोड़ों रुपए मुआवजा मिल गया है. जिन्होंने जमीनें बेचकर अब मोटरसाइकिल के शोरूम गांवों में खोल लिए हैं. इनके लौंडे जब चाहे मॉल में तफरी करते हैं। यह व्यापारी, साहूकार जो अब भी इस अदृश्य किसानों के नाम पर सरकार से लिए हुए कर्ज की माफी चाहते हैं. दूध के भाव 50 रुपए लीटर करना चाहते हैं, बगैर ब्याज का कर्ज चाहते हैं.
आपका दयादृष्टि वाला भाव अच्छा है, इसे आप अपने पास रखिये, लेकिन जिसे आप इस दृष्टि से देख रहे हैं, ये वो नहीं है. किसान तो दूर कहीं अपने सूखे खेतों में खड़ा आसमान की ओर ताक रहा है बारिशों के लिए ... जिसे आप देख रहे वह व्यापारी है, जिसे मैं देख रहा हूं वह अन्नदाता है, जो अब कहीं नहीं है. किसी की दृष्टि में नहीं. वह अदृश्य है मुख्यधारा के भूगोल से।