Friday, December 2, 2011

तस्‍वीरें...

( युवा कवि और लेखक सोनू उपाध्याय द्वारा अपने अजीज दोस्‍त नवीन रांगियाल की कुछ पुरानी तस्‍वीरों को देखकर 19 जुलाई 2011 को सुबह 10 :15 बजे लिखे गए कुछ विचार जिन्‍होंने अचानक कविता का रूप धर लिया.)  सोनू की अन्य कविताओं और आलेखों के लिए यहाँ क्लिक करें http://vimarshupadhyay.blogspot.com/

क्‍या कहूं तुम्‍हें                                                                   
कि तुम जितने पुराने हो रहे हो
उतना ही ताजा बन पडे हो..
रंगों मे रहकर रंगहीन क्‍यों हो तुम

कि तुम्‍हारे होने न होने के बीच
हर बार तुम्‍हे एक नये रंग के साथ देखता हूं  इन तस्‍वीरों में...
कोई गंध भी तो नहीं है तुम्‍हारी
फिर भी महकता हूं तुम्‍हें याद करते ही..

रहस्‍यमयी है तुम्‍हारी मुस्‍कान
कि तुम्‍हारे हंसते ही पृथ्‍वी सुस्‍ता लेती है थोडी देर
और समंदर मछलियों को थाम लेता है कुछ पल
हवा,  आग,  पानी सारे के सारे
मुठ्ठी भर इतिहास में मचल लेते हैं कुछ देर..

जानता हूं, बात केवल तस्‍वीरों की नहीं हो सकती
गल रही है जिंदगी
मोरी में रखे साबुन की तरह
और ठंडी हो रही है एक आग
जिसे पाल रहे थे हम अपने अंदर
सूरज को निगल जाने की होड में..  

लेकिन क्‍या कहूं तुम्‍हें,  जादूगर हो तुम
तोड चुके हो इस मायावी समय के हर तिलस्‍म को
इस दुनिया के गर्भवती होने के पहले से..
फैल रहे हो  नदी, पर्वत  पेड और फूल से लेकर
नवजातों की पहली मुस्‍कान में..

बडा अजीब लगता है तुम्‍हारा होना इस समय में
जब सांझ का घोसले में लौटना संदिग्‍ध हो
और डूब रही हो बैलों के घुंघरूओं की गूंज
हरिया के चेहरे पर चल रही घर्र-घर्र मशीन में.. 

चौपाल की चर्चा में बताया था मैंने
की सगे की मौत पर समुंदर के भीतर थे
और रोटी की तलाश में भटकते हुए
चिडिया के बच्‍चों को सिखा रहे थे संगीत..

वैसे कहना बहुत कुछ है तुम्‍हे
पर शेष है मुठ्ठी में समय, साथ बिताए दिन
और यह कविता..
जो सपनों में आती है बुजुर्गों और बच्‍चों के
ताकी बीते हुए पर मलाल न हो,
हंसकर खिले कोई नया फूल..
और तुम्‍हारी पुरानी तस्‍वीरों को देखकर
लोग दोस्‍तों को नम आंखों से याद कर सके..