Thursday, April 15, 2010

फिरकती लड़कियों में

बोरियत से भरी गर्मियों की
उन तमाम बोझिल दोपहरों में
कुछ मिनटों की आराम तलब
झपकी लेने के बजाये
घंटों इंटरनेट पर
तुम्हे खोजता रहा.

गूगल की उस विशालकार
समुद्रीय टेक्नोलॉजी पर भी
तुम मुझे नहीं मिली.

और में कई दोपहरों में
की - बोर्ड पर
तुम्हारी आवाजें तलाशता रहा.

कई आईने बनाये
हजारों चहरें उलटता
और पलटता रहा रात भर.

सब्जियां खरीदती औरतों की
आँखें टटोली.

गलियों में और सड़कों पर
फिरकती लड़कियों की लम्बी, गेहुवां, गुलाबी
और कभी -कभी सांवली
टांगों को नापता रहा.

इमारतों में
रात के वक़्त
परदों के पीछे
गाउन से ढकीं
कमरों में टहलती
औरतों के सायों को ताकता रहा.

संवलाई चाँदनी में
खिड़कियों से बाहर झांकते 
परदों से लहराते
रात के परिंदों से उड़ते
उरोजों के अंदाज देखता रहा.