केन्टीन से होकर गुजरती
कॉलेज की वो गली
बेफिक्र, आवारा और अल्हड आवाजें
हरी घास पर लेटा हुआ पहला प्रेम
अकेली दोपहरें
होस्टल की दीवारों से सटकर
अठखेलिया करते शुरूआती चुम्बन
गर्मी के दिनों की शामें
बाहर से आयी उदास
अकेली लड़कियां
और कुछ मनचले लडकें
एक छोर पर
लड़कियों से घिरा अकेला अनुराग
लट्टू की तरह घुमती अनुभूति
गुमसुम पापिया कहाँ हो तुम
सेंकडों सायकिलों के बीच
चरित्र अभिनेता धीरज
किसी नए नाटक की फिक्र में
स्वांग रचता, संवादों को रटता बार बार
मंच पर बने रहने की चाह
रिच एंड फेमस।
बंद होंठो की चुप्पी
खामोश अफ़साने सी
मनीष की निधि कहाँ हो तुम.
रिच एंड फेमस।
बंद होंठो की चुप्पी
खामोश अफ़साने सी
मनीष की निधि कहाँ हो तुम.
बुझी सोनाली, उदास आरती
ठकुराइन नेहासिंह
अंजलि बसंती
तितली की तरह फुदकती स्वाति
देवि के सौन्दर्य कहाँ हो तुम
गाँव की मिटटी सा कैलाश
नया नया माडर्न सतना वाला इन्दोरी गौरव
नशे में चूर अय्याश मार्टिन
लड़कों सी हंसोड़ रागिनी
शर्मीली श्वेता कहाँ हो तुम
बाहर से देखता दुनिया को
बच्चो को बड़ा करता सोनू
अश्विनी से सपाट चेहरों
अधूरी कहानी सी प्रशस्ति कहाँ हो तुम
सेंट्रल लाईब्रेरी के सामने वाला छोटा पेड़
कच्ची पक्की दोस्ती या प्रेम
फल बनकर पक गए हो शायद
या हजारों उँगलियों के निशान
चिपके हो अभी भी पेड़ पर
सौरभ सुमना के प्रेम कहाँ हो तुम
दिल्ली की रूमानियत
चांदनी चौक की तंग गलियां
होटलों में पसरता बेपरवाह
सिगरेट का धुंआ
डायरियों में दबे गुलमोहर के फूल
कमरा न. 305
कहाँ हो तुम