Friday, November 12, 2010

अलावा मेरे

अखरता है मेरा अपना होना मुझे
जबकि जानता हूँ
कि मैं सिर्फ मैं हो सकता हूँ
मै हो सकता नही कोई और
ना कोई और हो सकता हूँ मैं.

अखरता है मेरा अपना होना मुझे.

कि मै नही हूँ वो
जो होना चाहिए था मुझे.

लेकिन क्या हो सकता था मैं ?
अलावा मेरे अपने होने के.

हो सकता था कोई बहुत बुरा
या बहुत अच्छा कोई.

हो सकता था सपना
या सच कोई.

किसी कहानी का चरित्र
या कविता कोई.

मै क्यों हो ना सका
बजती हुई तालियाँ
या नैपथ्य से आती आवाज कोई.

हो सकता था संगीत
या विरह का गीत कोई.

किसी नाटक का अंत
या शुरुआत कोई.

मै क्यों हो ना सका चुप्पी
सवांदो के बीच की
या गहरा पसरा मौन कोई.

शब्द हो सकता था
या ध्वनि उनकी.

हो सकता था कारण कुछ होने का
या फिर अर्थ कुछ भी नही होने का.