औघट घाट
कहीं छूट न जाए पकड़ वक्त से या फ़िर सही अंत जीवन का...
Sunday, July 18, 2010
यूँ ही तुम्हे
तुम एक पंछी बन जाओ
और मैं गगन तुम्हारा
बिखर जाओ
मेरे हर एक छोर पर
और मैं देखता रहूँ
यूँ ही तुम्हे
कभी धूप
कभी शाम
तो कभी चाँद बनते हुए
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