Sunday, February 14, 2016

ज़्यादातर दोष आँखों का है

ज़्यादातर दोष आँखों का है
घूम-फिर कर
सारी दुनिया वहीँ लौटती है।
आँख किनारे
तुम्हारे आईलाइनर की हद पर
हलकी नमी में
काजल घुलकर तिर जाता है जहाँ
वहीँ घट और घाट है।
गहरे, काले- कत्थई
डार्क सर्कल में
जहाँ पूरे साल के रतजगे जमा हैं
वहां भी एक दुनिया मौजूद है।
तन की ख़ुश्बू
और मांसल आकांक्षा से परे
प्रेम की अज्ञात खोह में भी
एक दुनिया रवां है।
तुम्हारी दोनों हथेलियों को जोड़ने पर
त्रिभुज के बाजू में
जो बीज बनती है
वहां भी दुनिया संभव है।
गोयाकि कुछ नुक्स
उस पहली कविता के हैं
और तुम्हारे हेयर ड्रायर के भी
जो तुम्हारे बालों की हिदायत नहीं सुनते
इसलिए मेरे कंधों पर उलझते रहे हर शाम।
मैं डूबने के लिए
मरने के लिए
तुम्हारी आँखों के किनारे चुनता हूँ।
आँख किनारे
तुम्हारे आईलाइनर की हद पर
हलकी नमी में
काजल घुलकर तिर जाता है जहाँ
वहीँ घट और घाट है।