
यहाँ नकलन में निष्कल्न्केश्वर महादेव का मंदिर है. यह मंदिर इस गाँव की अकेली बड़ी पहचान है. कहते है कि किसी जमाने में इस गाँव के आसमान से होकर एक मंदिर उड़ता हुआ जा रहा था. जिसे नकलन में तपस्या करने वाले एक महात्मा ने देख लिया और अपनी साधना की शक्तियों से उसे गाँव में उतार लिया. बाद में यह मंदिर निष्कल्न्केश्वर महादेव के नाम से जाना गया.
मंदिर में भगवान शिव की पंचमुखी प्रतिमा है. शुरू में यह एक मामूली सा दिखने वाला मंदिर था. उस समय प्रजा के लिए मंदिर में प्रवेश भी प्रतिबंधित था. लेकिन बाद में किसी नेपाली राजा ने मंदिर का फिर से निर्माण करवाया और आम लोग भी मंदिर में जाने लगे. इस बात का कोई स्पष्ट उल्लेख यहाँ नहीं है कि मंदिर नेपाली राजा ने फिर से बनवाया था लेकिन नेपाली लिपि में लिखे स्तम्भ और इसी शैली की घंटियाँ मंदिर में मौजूद है जो इस तरफ इशारा करते है कि मंदिर के साथ कुछ न कुछ नेपाली कनेक्शन जरुर है. इसके विपरीत मंदिर के आसमान में उड़ने और महात्मा द्वारा उसे अपनी शक्तियों से जमीन पर उतार लेने के किस्से के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है. लेकिन यह सच है कि हर साल महाशिवरात्री पर यहाँ लोगों की भीड़ टूट पड़ती है. अनादी ... अनंत शिव के दर्शन के लिए और यहाँ स्थित एक कुण्ड के पानी से अपने रोगों को दूर करने के लिए. इस गाँव और यहाँ आने वाले लोगों का यह विश्वास है कि मंदिर के समय से ही बने हुए इस कुण्ड में नहाने से सफ़ेद दाग और कुष्ठ रोग जैसी बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है. शायद इसीलिए यहाँ के शिव का नाम निष्कल्न्केश्वर महादेव पड़ गया. देह के सफ़ेद दाग एक तरह से इंसान के जीवन में कलंक की तरह ही होते है. इसी कलंक को मिटाने के लिए लोग यहाँ चले आते है. इसी दौरान मन के मैल को साफ़ करने की इच्छा भी इंसानों के मन में शायद कहीं दबी पड़ी हो.
हर साल यहाँ महाशिवरात्री पर मेला भी लगता है जो अगले पांच दिनों तक चलता है. पारंपरिक मेले की तरह यहाँ भी लोगों के काम से संबंधी जरुरी चीज़ें, औरतों के सजने संवरने और घरेलु सामान मिलता है. इस महाशिवरात्रि को कुछ घंटे नकलन में गुजरे. यहाँ यही देखा और महसूस किया कि लोग यहाँ आते है. कुण्ड में नहाकर अपने कलंक मिटाते है और फिर निष्कल्न्केश्वर महादेव के दर्शन कर घर लौट जाते है. घर लौटते हुए मेले से अपनी जरूरतों का सामान भी खरीदते जाते है. वापसी में अधिकतर औरतों के हाथों में मिटटी के मटके नज़र आये तो वही आदमियों के हाथों में गाय बेल हांकने के लिए रंग बिरंगी सजी हुई लाठियां - बच्चे कुछ खिलोने और गुब्बारों के साथ लौट आये- हम आस्था और शंका के बीच घर लौट आये. कलंकित लोगों के निष्कलंकित शिव.