Wednesday, February 22, 2012

कलंकित लोगों के शिव

देवास से करीब २५ किलो मीटर की दुरी पर नकलन बसा हुआ है. देवास से नकलन के बीच तीन गावों के नाम ऐसे है जो याद रहे. पटलावदा, लोहाना और आगरोद. नकलन जाने के लिए इन तीनों गावों को लांघना पड़ता है. कुछ कच्चे, कुछ पक्के रास्ते, कुछ जर्जर सड़कें तो कुछ पगडंडियाँ. हमने पगडंडी चुनी. हरी भरी खेतों के बीच लहलहाती हुई पगडंडियाँ. रास्ते में सामने से आते हुए कुछ किसान हाथों में लाठियां लिए नज़र आये.  उन्हें देखकर लगा कि वे किसी दबंग जाति के लोग होंगे. लेकिन वास्तव में वे किसान थे. कुछ औरतें हाथ में छोटी छोटी ढोलकें लेकर पैदल जाती हुई. ये नटनिया थी. ग्रामीण इलाकों के घरों की दहलीजों पर खड़ी होकर ढोलक बजाती है अपना पेट भरने के लिए. ये नटनिया शादी ब्याह में भी गाती बजाती और नाचने का काम करती है. खासतोर से राजपूतों के घरों में. इन्हें देखकर लगा कि इस तरफ आज भी नटनिया है और इसी तरह अपना जीवन बिताती है और पेट भरती है. नकलन जाते समय ऐसा लगा कि कहीं बहुत दूर जा रहे है. दूर तक कहीं कोई ठिकाना नज़र नहीं आता. देर बाद जमीन के उतार पर एक बड़ा झुला नज़र आया. मेले में लगने वाला सबसे बड़ा झुला. नकलन के मेले का झुला.
यहाँ नकलन में निष्कल्न्केश्वर महादेव का मंदिर है. यह मंदिर इस गाँव की अकेली बड़ी पहचान है. कहते है कि किसी जमाने में इस गाँव के आसमान से होकर एक मंदिर उड़ता हुआ जा रहा था. जिसे नकलन में तपस्या करने वाले एक महात्मा ने देख लिया और अपनी साधना की शक्तियों से उसे गाँव में उतार लिया. बाद में यह मंदिर निष्कल्न्केश्वर महादेव के नाम से जाना गया.
मंदिर में भगवान शिव की पंचमुखी प्रतिमा है. शुरू में यह एक मामूली सा दिखने वाला मंदिर था. उस समय प्रजा के लिए मंदिर में प्रवेश भी प्रतिबंधित था. लेकिन बाद में किसी नेपाली राजा ने मंदिर का फिर से निर्माण करवाया और आम लोग भी मंदिर में जाने लगे. इस बात का कोई स्पष्ट उल्लेख यहाँ नहीं है कि मंदिर नेपाली राजा ने फिर से बनवाया था लेकिन नेपाली लिपि में लिखे स्तम्भ और इसी शैली की घंटियाँ मंदिर में मौजूद है जो इस तरफ इशारा करते है कि मंदिर के साथ कुछ न कुछ नेपाली कनेक्शन जरुर है. इसके विपरीत मंदिर के आसमान में उड़ने और महात्मा द्वारा उसे अपनी शक्तियों से जमीन पर उतार लेने के किस्से के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है. लेकिन यह सच है कि हर साल महाशिवरात्री पर यहाँ लोगों की भीड़ टूट पड़ती है. अनादी ... अनंत शिव के दर्शन के लिए और यहाँ स्थित एक कुण्ड के पानी से अपने रोगों को दूर करने के लिए. इस गाँव और यहाँ आने वाले लोगों का यह विश्वास है कि मंदिर के समय से ही बने हुए इस कुण्ड में नहाने से सफ़ेद दाग और कुष्ठ रोग जैसी बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है. शायद इसीलिए यहाँ के शिव का नाम निष्कल्न्केश्वर महादेव पड़ गया. देह के सफ़ेद दाग एक तरह से इंसान के जीवन में कलंक की तरह ही होते है. इसी कलंक को मिटाने के लिए लोग यहाँ चले आते है. इसी दौरान मन के मैल को साफ़ करने की इच्छा भी इंसानों के मन में शायद कहीं दबी पड़ी हो.
हर साल यहाँ महाशिवरात्री पर मेला भी लगता है जो अगले पांच दिनों तक चलता है. पारंपरिक मेले की तरह यहाँ भी लोगों के काम से संबंधी जरुरी चीज़ें, औरतों के सजने संवरने और घरेलु सामान मिलता है. इस महाशिवरात्रि को कुछ घंटे नकलन में गुजरे. यहाँ यही देखा और महसूस किया कि लोग यहाँ आते है.  कुण्ड में नहाकर अपने कलंक मिटाते है और फिर निष्कल्न्केश्वर महादेव के दर्शन कर घर लौट जाते है. घर लौटते हुए मेले से अपनी जरूरतों का सामान भी खरीदते जाते है. वापसी में अधिकतर औरतों के हाथों में मिटटी के मटके नज़र आये तो वही आदमियों के हाथों में गाय बेल हांकने के लिए रंग बिरंगी सजी हुई लाठियां - बच्चे कुछ खिलोने और गुब्बारों के साथ लौट आये- हम आस्था और शंका के बीच घर लौट आये. कलंकित लोगों के निष्कलंकित शिव.

15 comments:

  1. chandraparakash sharmaFebruary 23, 2012 at 2:40 AM

    wese to aap hamesha hi accha likhte hai...kintu is lekh ka aur jeevant varnan kiya jaa sakta tha....chuki mai bhi aapke sath hi tha aur aapke aashirwad se aur sahyog se thoda bahut likhne ki koshish karta hu isliye laga ki shabdo ke saundarya se lekkh ko shringaarit kiya jaa sakta tha....khair jo bhi he..prayaas accha hai.....shubhkamnayen....

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    1. हाँ ! यह सही है कि मैं अच्छा नहीं लिख पाया. बस दिमाग में था कि वहाँ गए है तो कुछ लिखा जाए. जल्दी लिखने की कोशिश की गई है. लेकिन टिपण्णी के लिए धन्यवाद.

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  2. बहुत सुन्दर लिखा है. तुम्हारे लेखन में ओब्ज़रवेशन बहुत अच्छा होता है. लेखन और कविताओं दोनों में. इस से लगता है की तुम हर चीज़ शिद्दत से देखते है महसूस करते है. यह लेख भी अच्छा है. मुझे पता है तुम चीज़ों को अपने साथ अटका लेते हो और फिर आगे निकल जाते हो. सब को छोड़कर. सब को लगता है कि तुम उन्हें छोड़कर आगे निकल गए हो.. लेकिन वास्तव में तुम अपने साथ सब कुछ लिए होते हो. फूलों को, पेड़ों को, हवा को, उस समय को, नदियों को और लोगों को, तुम अपने अन्दर बहुत कुछ लेकर चलते हो.! ढेर सारा प्यार.

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  3. बहुत ही सुन्दर भाव| धन्यवाद।

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  4. chandraparakash sharmaFebruary 23, 2012 at 3:07 AM

    benaamiyo se anurodh he ki apna name bhi prakashit kare...jisse lekhak ko suvidha ho....wese to ham sabhi benaam hi hai...lekin samajik dhanche me khud ki pahchan ke liye bhautik name akhtiyar kiye he ham sabne....unhi bhautik namo ke parichay ki apeksha he..dhanywad....

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    1. चन्द्रप्रकाश, शेक्सपीयर ने कहा है नाम में क्या रखा है. और वैसे भी नाम बांटने का काम करता है, नाम से बटवारे होते है. दीवारें खड़ी होती है, रास्ते बंद हो जाते है. नाम तो एक ही है. साँचा नाम सतगुरु का. इसके परे तो हम सब बन्दे है उसके. जहाँ तक पहचान का सवाल है तो वो नाम से कहीं ज्यादा होती है. वैसे लेखक जानते है हमारा हालचाल.

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  5. badhiya sir,ek nai prajaati ka pata chala aur bhagwwan shiv sab ko maanavta de yahi kamna hai....

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  6. भीका शर्माFebruary 23, 2012 at 3:41 AM

    लेखन शैली प्रभावकारी है

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  7. कलंक धोने का कार्य न जाने कब से कर रहे हैं देवतागण..

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  8. नवीन जी इस शानदार अनुभव में काश हम भी आपके साथ होते,, यह स्थान ऐतिहासिक महत्त्व का होने के साथ ही शिव भक्तों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है, अब तो यहाँ पर्यटन विभाग की भी नज़र पढ़ गयी है, आपकी यात्रा का यह शानदार अनुभव हमे भी बताने के लिए आप धन्यवाद् के पात्र हैं,. आपको कोटिश धन्यवाद्.

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  9. aap ne jo likha vaha aap ki yogyata ko darshata hai.. hame aap se yahi ummid thi...aap ka anubhv aacha laga...

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  10. नवीन सर बहुत बढि़या हैं.. शब्दों का चयन सुंदर और सरल हैं..
    मुझे लगा मानो मै सारे दृश्य सजीव हो...

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  11. नवीन सर बहुत बढि़या हैं.. शब्दों का चयन सुंदर और सरल हैं..
    मुझे लगा मानो मै सारे दृश्य सजीव हो...

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  12. चंद्रप्रकाशFebruary 25, 2012 at 1:35 AM

    बात तो सही है आपकी...किन्तु शेक्सपीयर के परे भी तो संसार है....वो तो बहुत कुछ कहकर चले गए है,,,,और आपका ये कहना की नाम बंटवारा करता है थोडा व्यथित करने जैसा है.....क्योंकि यदि ऐसा होता तो संभवतः लेखक(जो आपका हालचाल जानते हे ) वे भी बेनाम रहना ही पसंद करते और अपने ब्लॉग को भी बेनाम ही रहने देते..और फिर आप पहचान पर आते है...किन्तु पहचान के लिए भी तो नाम आवश्यक है...महोदय/ महोदया....दीवारे खड़ी होना और रास्ते बंद होने के कारण नाम कदापि नहीं हो सकता इसका कारन नामी की सोच और व्यवहार है...और हकीकत तो यह भी हे की सभी शख्स बेनाम सतगुरु की नहीं अपितु नामी सतगुरु या परमात्मा की उपासना करते है....और यह नाम ही है जिसकी वजह से इंसान मौत के बाद भी लोगो के ज़ेहन में जिंदा रहता है....वेसे शुक्रिया आपका...आप जैसे चिंतको का मार्गदर्शन मिलता रहे,,,यही विनय है....

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  13. ग्रामीण परिवेश को बड़ी ही आत्मीयता व् सुन्दरता के साथ चिरित किया गया है. ऐसा लगता है की ये गाव की दृशयता को लेकर यह एक वर्णित रेखाचित्र है .................प्रताप सिंह ठाकुर

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