Monday, December 5, 2011

मौत आई भी तो बुढ़ापे का इंतज़ार करती रही.

देव आनन्द जिंदगी भर अपने बूढ़े होने के खिलाफ लड़ते रहे. अपनी उमर की हर सीढ़ी पर खुद को रंगदार जवान साबित करने की कोशिश करते रहे. उम्र अपनी चाल से उनकी तरफ बढती रही लेकिन वे इसकी झुर्रियों को चुन चुन कर छाटते रहे और जवानी के लिए जगह बनाते रहे. जिस उम्र में चलना फिरना मुश्किल हो जाये उस उम्र में उन्होंने कई फ़िल्में बनाई. किसी नौजवान डायरेक्टर की तरह काम किया और धुएं की तरह छट गए बिना बूढ़े हुए. शायद देव आन्नद ही ऐसे इंसान होंगे जिनकी रंगत देखकर कई बार मौत वापस लौटी होगी. इस बार खाली हाथ नहीं लौटने के लिए मौत को कोई बहाना चाहिए था शायद इसीलिए एक ही दौरे का सहारा लिया. लेकिन वो आयी भी तो नींद में ही, आखिर में मौत की भी हिम्मत नहीं हुई कि वो उनके जागते हुए आए. जब वो आयी तो वे लन्दन की एक होटल मेफेयर के कमरे में सो रहे थे.
उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि हाँ उन्हें अपने जमाने की सुरैया से प्रेम था. उन्होंने सुरैया के सामने अपनी मोहब्बत का इज़हार भी किया. सुरैया भी देव आनन्द से प्रेम करती थी. लेकिन चीज़ें आगे घट नहीं सकीं. देव आनन्द ने इसके बाद यह भी कहा कि अब वे सुरैया को याद नहीं करते. वो अतीत में नहीं वर्तमान में रहने वाले इंसान है. वास्तव में जिंदगी उनके लिए धुएं की तरह थी. कहानियां उनके जीवन में भी घटती रही, जैसे हर किसी आदमी के जीवन में घटती है. लेकिन वे उन्हें छाटते और आगे निकलते गए हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाते हुए. उन्होंने कहा भी है कि उन्हें नियति में यकीन नहीं. इसीलिए उम्रभर अथक काम करते रहे. अपनी मौत के पहले उन्होंने यह भी इच्छा जाहिर कि थी की उन्हें मरने के बाद भारत ना ले जाया जाये. वही लन्दन में ही उनका अन्तिम संस्कार हो. इस के पीछे की वजह तो ठीक तरह से वही जानते है. लेकिन अटकलें तो यही लगाईं जा सकती है कि  नौजवानों को वे अपने चहरे की झुर्रियां नहीं दिखाना चाहते होंगे. सच तो यह है कि देव आनन्द ने अपनी जिंदगी को आजादी के साथ जिया. बगैर इसकी गुलामी किए. इसलिए अतीत के जाले कभी उन पर कब्ज़ा नहीं कर सके. सुरैया की रूमानियत भी उन्हें फ़िक्र में नहीं डाल सकी और जीवन पर अपनी पकड़ बनाये रखी. राजू अपने रास्तों से ही जीवन का स्वामी बना. अतीत के जालों को तोड़कर और वर्तमान पर अपना कब्ज़ा बनाए रखकर. मौत आई भी तो बुढ़ापे का इंतज़ार करती रही.