Friday, August 20, 2010

सब कुछ निर्मल है

सब कुछ निर्मल है 

कमरे में छाई धुंध 
जो निर्मल वर्मा 
प्राग से समेटकर लाये थे

रायना की अंतहीन रहस्यमयता को 
अपनी कोख में बसाकर
बेहताश नशे में
भटकती रहती है वे दिन

कमरे में 

टेबल पर एक चिथड़ा सुख है

सुख...!

ना घटता है ना बढ़ता है 

दिन और रात 
असामान्य तरीके से समान है

धुंध से उठती धून
हर वक़्त - हमेशा
बिस्तर पर
सिरहाने रखी रहती है
मै जानबूझकर उसे वहाँ से उठाता नहीं 

मै नींद मै भी देख सकूँ 
चलती हुई दुनिया 

पीछे छुटता हुआ आज 

शब्द और स्मृति 
हिस्सा है 
जीवन और मृत्यु का 
जीवन और मृत्यु की तरह 

सब कुछ निर्मल है