Monday, June 20, 2016

सेमिनरी हिल्स

धरमपेठ के अपने सौदें हैं
भीड़ के सर पर खड़ी रहती है सीताबर्डी

कहीं अदृश्य है
रामदास की पेठ

बगैर आवाज के रेंगता है
शहीद गोवारी पुल
अपनी ही चालबाजियों में
ज़ब्त हैं इसकी सड़कें

धूप अपनी जगह छोड़कर
अंधेरों में घिर जाती हैं

घरों से चिपकी हैं उदास खिड़कियां
यहां छतों पर कोई नहीं आता

खाली आंखों से
खुद को घूरता है शहर

उमस से चिपचिपाए
चोरी के चुंबन
अंबाझरी के हिस्से हैं

यहां कोई मरता नहीं
डूबकर प्यार में

दीवारों से सटकर खड़े साये
खरोंच कर सिमेट्री पर नाम लिख देते हैं

जैस्मिन विल बी योर्स
ऑलवेज ..
एंड फॉरएवर ...

दफ़न मुर्दे मुस्कुरा देते हैं
मन ही मन

खिल रहा वो दृश्य था
जो मिट रहा वो शरीर

अंधेरा घुल जाता है बाग़ में
और हवा दुपट्टों के खिलाफ बहती है

एक गंध सी फ़ैल जाती हैं
लड़कियों के जिस्म से सस्ते डिओज की

इस शहर का सारा प्रेम
सरक जाता है सेमिनरी हिल्स की तरफ।

Saturday, June 18, 2016

कभी यूं भी तो हो


कभी यूं भी तो हो 

चलने की आहटें जहां 
वहीँ तुम्हारी आंख के किनारों पर शाम
उंगलियों के पोर में दोपहरें हो

रात गुजरे महक कर
सुबह शीशे की परी हो

रोज सुबह काजल से
खींचों किनारों पर मुझे
रात उतारो आंखों से लेंस की तरह

उस आधे अंधेरे वाली हथेलियों
उड़ते स्कार्फ़ की तरह जिंदगी हो

इन सारे अंधेरे कमरों में
तुम्हारे उजाले गश्त करें

पत्ते टूटे पेड़ से
उम्र टूटकर यूं झरे।