आवाजों की छतें
हथेलियों सी दीवारें
तुम्हारे होने का अंतिम वाक्य है
दोपहरों की तरह
इन खाली कमरों में
चितेरों लौट आए तुम
वहाँ नीला सफ़ेद का है
काले का अपना सच
लड़ता हुआ खुद से
हरा भी हो किसी का
घुल जाते - मिट गए फिर
मिटते जाते हो
सुख - असुख की परतों पर
प्रेम करते हो तुम
चूमते हो सफ़ेद त्वचाओं को
बंधे नहीं खूंटियों से
गैलरी में टहलते रहे
इस बार सलीबों पर नहीं चढ़े
पैरों पर चले तो आज़ाद हुए तुम.
हथेलियों सी दीवारें
तुम्हारे होने का अंतिम वाक्य है
दोपहरों की तरह
इन खाली कमरों में
चितेरों लौट आए तुम
वहाँ नीला सफ़ेद का है
काले का अपना सच
लड़ता हुआ खुद से
हरा भी हो किसी का
घुल जाते - मिट गए फिर
मिटते जाते हो
सुख - असुख की परतों पर
प्रेम करते हो तुम
चूमते हो सफ़ेद त्वचाओं को
बंधे नहीं खूंटियों से
गैलरी में टहलते रहे
इस बार सलीबों पर नहीं चढ़े
पैरों पर चले तो आज़ाद हुए तुम.
व्यक्त रहे मन की सब सुलझन..
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