और कितना सच है यह
कि अब तुम नही रहे .

और कितना झूठा हूँ मै
कि तुम्हे श्रद्धांजलि देने के लिए
किताब उठाकर तुम्हारी
माथे से लगाता हूँ अपने .
और मरने के बाद तुम्हारे
पढ़ना चाहता हूँ कहानी तुम्हारी .
कितना अजीब है यह समय
तुम्हारे ना रहने पर
और अधिक पढ़े जाते हो तुम .
बिस्मिल्लाह की शहनाई
संगत करने लग जाती है लहरों के साथ
गंगा के तट पर .
ऋषिकेश मुखर्जी जब विदा होते है
हर आदमी बन जाता है
आनंद और बाबू मुशाय .
कानों को अच्छे लगने लगते है
सुर और धुने नौशाद की .
सारे किरदार जीवंत हो उठते है
अभिव्यक्ति के लिए
दुनिया के रंग-मंच पर
जब किसी रंगकर्मी के जीवन का
परदा गिर जाता है हमेशा के लिए .
क्या जिंदा रहने से
महत्व घट जाता है
या मर जाना होता है महत्वपूर्ण ...?
और क्या....! ठीक ही तो है....बिना मरे स्वर्ग थोड़े मिलता है...समय आ जाने के बाद मरना भी ज़रूरी है.....अंत भाल तो सब भला.
ReplyDeleteइतनी भावपूर्ण कविता के लिए कहने को शब्द हि नहीं है
ReplyDeleteव्यक्तित्व को पहचानने के सामाजिक अन्तर्द्वन्द को शब्दों में व्यक्त करने का आभार ।
ReplyDeleteSHUKRIYA... BANDHU.
ReplyDeleteकवि का सत्य से साक्षात्कार दिलचस्प है।
ReplyDeleteगज़ब की प्रस्तुति…………………।शानदार, लाजवाब, बेह्तरीन्।
ReplyDeletebehad shaandar kavita share ki hai aapne ..bahut shuqriya
ReplyDeleteYou really make it appear so easy along with your
ReplyDeletepresentation however I find this topic to be really one thing which I think I might
never understand. It seems too complex and very vast for
me. I'm looking forward in your next put up, I will try to get the hold of it!
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