मैं अब वहीं हूँ
उसकी आँख के एक छोर पर
उसकी आँख के एक छोर पर
पहाड़ों पर फिरकती
पवनचक्कियों में
चलती हुई
लेकिन कहीं नहीं पहुँचती हुई
उसके होंठ के किनारों में हूँ
सूखते नहीं, जो भीगते भी नहीं
सूखते नहीं, जो भीगते भी नहीं
मैं वहां नहीं हूँ, यहाँ भी नहीं
कहीं भी नहीं
कहीं भी नहीं
अपनी आत्मा की तरह
जिंदा भी नहीं, मृत भी नहीं
बगैर दीवारों के मकान
जिनके दरवाजें नहीं, दस्तकें भी नहीं
जिनके दरवाजें नहीं, दस्तकें भी नहीं
उन रास्तों में हूँ
चलते नहीं, जो ठहरते भी नहीं
चलते नहीं, जो ठहरते भी नहीं
सड़क के पीले और सफ़ेद लेम्पोस्ट की तरह
जिनकी रोशनियों से कुछ छटता नहीं
जिनकी रोशनियों से कुछ छटता नहीं
पतंगे छटपटा कर मर जाते हैं जहाँ
ऐसे चौराहों को हासिल जहाँ कुछ भी नहीं
ऐसे चौराहों को हासिल जहाँ कुछ भी नहीं
मैं वहीं कटूंगा धीरे- धीरे
जहाँ छोड़ा था तुमने
जिसे तुम पहला या अंतिम सिरा कहती थी
वहीं अपने घावों को देखूंगा
सुख में बदल जाने तक
जहाँ छोड़ा था तुमने
जिसे तुम पहला या अंतिम सिरा कहती थी
वहीं अपने घावों को देखूंगा
सुख में बदल जाने तक
मुझे मनाने की कोशिश मत करना
मैं सीख गया हूँ अब
नहीं लिखना - कुछ भी नहीं लिखना
मैं सीख गया हूँ अब
नहीं लिखना - कुछ भी नहीं लिखना
अब मैं सिर्फ देखूंगा
अपना जीना, अपना मरना।
अपना जीना, अपना मरना।
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