Tuesday, May 12, 2015

सेमिनरी हिल्स

धरम पेठ के अपने सौदें हैं
भीड़ के सर पर खड़ी रहती है सीताबर्डी

अदृश्य हैं रामदास की पेठ

बगैर आवाज के रेंगता है
शहीद गोवारी पुल

धूप अपनी जगह छोड़कर
अंधेरों में घिर जाती हैं

घरों से चिपकी हैं उदास खिड़कियां
यहाँ छतों पर कोई नहीं आता

खाली आँखों से
खुद को घूरता है शहर

उमस से चिपचिपाये
चोरी के चुंबन
अंबाझरी के हिस्से हैं

दीवारों से सटकर खड़े रहते हैं साये
खरोंच कर सिमेट्री पर नाम लिख देते हैं

जैस्मिन विल बी योर्स
ऑलवेज,
एंड फॉर एवर ...

यहाँ दफ़्न मुर्दे मुस्कुराते देते हैं मन ही मन
खिल रहा, वो दृश्य था
जो मिट रहा, वो शरीर

एक गंध सी फेल जाती है
लड़कियों के जिस्म से सस्ते डीओज़ की

अंधेरा घुल जाता है उनके साथ
और हवा दुपट्टों के खिलाफ बहती है

इस शहर का सारा प्रेम
सरक जाता है सेमिनरी हिल्स की तरफ।


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