जाओ !
आगे निकल जाओ
पैर रखकर
सर के ऊपर से पैर रखकर
नीचे मत देखो
तुम खड़ी भी रह सकती हो
जब तक मन करे
मेरे सिरहाने
तकलीफें लादकर सीने पर मेरे
तुम चाहोगी तो सिर्फ सुख की बातें करेंगे
चाहो तो साफ़ कर लो जूतें
जी करे तो
आधे गढ़े हैं जमीन में
आधे तुम्हारे हैं हम
आजकल रोड़ भैरव हैं हम।
17 सितंबर, 2014
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हमारे माथे से रगड़ कर
मिट्टी ही घर रही हैं अपना
और सफर भी मिट्टी ही होगी
मिट्टी ही घर रही हैं अपना
और सफर भी मिट्टी ही होगी
जब वापस लौटकर आओगी तुम
हम मिट्टी ही मिलेंगे तुम्हे
राख हो जाने के बाद भी
तुम्हारी आत्मा के विरूद्ध
कभी सर झुक जाए तुम्हारा
कभी सर झुक जाए तुम्हारा
इस सड़क की तरफ
तो हैरां मत होना
ठोकरें ही नहीं
थोड़ा सा अदब भी हैं हमारे हिस्से में
जी करे तो
गुड- घी का धूप लगा देना
या जल चढ़ा जाना कभी
आधे गढ़े हैं जमीन में
आधे तुम्हारे हैं हम
आजकल रोड़ भैरव हैं हम।
17 सितंबर, 2014
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