मैं हिंदू हूँ। इसे अंडरलाइन समझें,
हर धर्म में एक बलात्कारी होता, एक संत। एक किलर है, एक सेवर। हर धर्म में कुछ शाकाहारी होते हैं, कुछ मांसाहारी। हर वर्ग में कुछ सभ्य है, कुछ ज़ाहिल। समस्त गुणों और अवगुणों से मिलकर एक समूह का निर्माण होता है। कई संस्कृतियों से मिलकर एक समाज बनता। बहुत सी सभ्यताओं और मान्यताओं की कोख़ से धर्म का जन्म होता है। इसलिए किसी एक मनुष्य के गुनाह के लिए पूरे धर्म, पूरी संस्कृति या सभ्यता को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। कतई नहीं।
हालांकि जब एक वर्ग, जाति, समूह या धर्म के लोग किसी एक ही अपराध को बार- बार दोहराएं तो वे गुनहगार हैं और जिम्मेदार भी। चोरी कर पेट भरने वाली कंजर जाति, पीटने के काम को मेहनत कहकर लूटने वाले आदिवासी समुदाय का एक हिस्सा और पूरी दुनिया में ज़ेहाद के नाम पर आतंक फैलाने वाले मुस्लिम समुदाय का एक हिस्सा इसका उदाहरण है।
इस वक़्त देश के कुछ लोग एक सिलेक्टिव पॉलिटिकल एजेंडे के शिकार हैं, ख़ास बात है कि उन्हें पता ही नहीं है कि वे इस एजेंडे के शिकार हो रहे हैं। जस्टिस फ़ॉर आसिफा ट्रोल हो रहा है। अपनी आत्मा के पास चिपकी हुई तख्तियों पर उन्होंने लिखा है '' मैं हिंदुस्तान हूँ और मैं शर्मसार हूँ।''
वे हिंदुस्तान और हिंदू होने पर शर्मसार हैं। क्योंकि कठुआ बलात्कार प्रकरण की चार्जशीट में आरोपी को हिंदू, घटनास्थल को मंदिर और पीड़ित को मुस्लिम लिखा गया है। चार्जशीट में खासतौर से अंडरलाइन किए गए इन तीन शब्दों से यह सनातन शैली खंडित, अपवित्र हो गई। उनके पूर्वजों का रक्त बदल गया, अब वे अपने माँ- बाप बदलना चाहते है और अब वे हिंदू नहीं रहना चाहते हैं। क्योंकि वे शर्मसार है।
अब मैं लिखता हूँ- मैं हिंदुस्तान हूँ, मुझे गर्व है। अगर आप शर्मसार है और गर्व करना चाहते हैं तो मुस्लिम धर्म अपना लें या ईसाई बन जाए या कुछ और जो आप चाहे। (इसे अंडरलाइन समझें)
हिंदू अपने पूरे जीवन में आत्मचिंतन की प्रक्रिया से गुजरता है। वह पश्चाताप करता है। आत्मचिंतन और पश्चाताप की यही प्रक्रिया उसे और ज़्यादा उदार बनाती है। जब कोई चींटी उसकी भोजन की थाली की तरफ बढ़ती है तो वह उसे धकेल देता है, इस प्रक्रिया में उसकी उंगलियों से चींटी मर जाती है। इस हत्या के लिए वह खुद को गुनहगार मानकर अपनी आत्मा पर एक तख्ती टांग लेता है। जिस पर लिखा होता है आत्मचिंतन और पश्चाताप। यहां तक ठीक है, लेकिन कुछ मूर्ख हिंदू स्वयं की आलोचना को इतनी दूर तक ले जाते हैं कि वे अपनी तख्तियों पर लिख देते हैं कि मैं हिंदुस्तान हूँ और हिंदू होने पर शर्मसार हूँ।
इस तरह एक सनातन जीवनशैली, पद्धति और सभ्यता कुछ मूर्खों की वजह से अपवित्र और खंडित हो जाती है। क्योंकि इस शैली से जीने वाले कुछ लोग एक खासतौर के प्रोजेक्टेड और सिलेक्टिव पॉलिटिकल एजेंडे के शिकार हैं। वे छाती पर तख़्ती और हाथ में कैंडल लेकर अपने ही हिंदू होने का मातम मानते हैं।
इस वक़्त, इस महामूर्खता के बीच सबकुछ खण्ड- खण्ड होने की प्रक्रिया में भी मैं हिंदू हूँ और गर्वित हूँ। इसे अंडरलाइन समझें।
#औघटघाट
हर धर्म में एक बलात्कारी होता, एक संत। एक किलर है, एक सेवर। हर धर्म में कुछ शाकाहारी होते हैं, कुछ मांसाहारी। हर वर्ग में कुछ सभ्य है, कुछ ज़ाहिल। समस्त गुणों और अवगुणों से मिलकर एक समूह का निर्माण होता है। कई संस्कृतियों से मिलकर एक समाज बनता। बहुत सी सभ्यताओं और मान्यताओं की कोख़ से धर्म का जन्म होता है। इसलिए किसी एक मनुष्य के गुनाह के लिए पूरे धर्म, पूरी संस्कृति या सभ्यता को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। कतई नहीं।
हालांकि जब एक वर्ग, जाति, समूह या धर्म के लोग किसी एक ही अपराध को बार- बार दोहराएं तो वे गुनहगार हैं और जिम्मेदार भी। चोरी कर पेट भरने वाली कंजर जाति, पीटने के काम को मेहनत कहकर लूटने वाले आदिवासी समुदाय का एक हिस्सा और पूरी दुनिया में ज़ेहाद के नाम पर आतंक फैलाने वाले मुस्लिम समुदाय का एक हिस्सा इसका उदाहरण है।
इस वक़्त देश के कुछ लोग एक सिलेक्टिव पॉलिटिकल एजेंडे के शिकार हैं, ख़ास बात है कि उन्हें पता ही नहीं है कि वे इस एजेंडे के शिकार हो रहे हैं। जस्टिस फ़ॉर आसिफा ट्रोल हो रहा है। अपनी आत्मा के पास चिपकी हुई तख्तियों पर उन्होंने लिखा है '' मैं हिंदुस्तान हूँ और मैं शर्मसार हूँ।''
वे हिंदुस्तान और हिंदू होने पर शर्मसार हैं। क्योंकि कठुआ बलात्कार प्रकरण की चार्जशीट में आरोपी को हिंदू, घटनास्थल को मंदिर और पीड़ित को मुस्लिम लिखा गया है। चार्जशीट में खासतौर से अंडरलाइन किए गए इन तीन शब्दों से यह सनातन शैली खंडित, अपवित्र हो गई। उनके पूर्वजों का रक्त बदल गया, अब वे अपने माँ- बाप बदलना चाहते है और अब वे हिंदू नहीं रहना चाहते हैं। क्योंकि वे शर्मसार है।
अब मैं लिखता हूँ- मैं हिंदुस्तान हूँ, मुझे गर्व है। अगर आप शर्मसार है और गर्व करना चाहते हैं तो मुस्लिम धर्म अपना लें या ईसाई बन जाए या कुछ और जो आप चाहे। (इसे अंडरलाइन समझें)
हिंदू अपने पूरे जीवन में आत्मचिंतन की प्रक्रिया से गुजरता है। वह पश्चाताप करता है। आत्मचिंतन और पश्चाताप की यही प्रक्रिया उसे और ज़्यादा उदार बनाती है। जब कोई चींटी उसकी भोजन की थाली की तरफ बढ़ती है तो वह उसे धकेल देता है, इस प्रक्रिया में उसकी उंगलियों से चींटी मर जाती है। इस हत्या के लिए वह खुद को गुनहगार मानकर अपनी आत्मा पर एक तख्ती टांग लेता है। जिस पर लिखा होता है आत्मचिंतन और पश्चाताप। यहां तक ठीक है, लेकिन कुछ मूर्ख हिंदू स्वयं की आलोचना को इतनी दूर तक ले जाते हैं कि वे अपनी तख्तियों पर लिख देते हैं कि मैं हिंदुस्तान हूँ और हिंदू होने पर शर्मसार हूँ।
इस तरह एक सनातन जीवनशैली, पद्धति और सभ्यता कुछ मूर्खों की वजह से अपवित्र और खंडित हो जाती है। क्योंकि इस शैली से जीने वाले कुछ लोग एक खासतौर के प्रोजेक्टेड और सिलेक्टिव पॉलिटिकल एजेंडे के शिकार हैं। वे छाती पर तख़्ती और हाथ में कैंडल लेकर अपने ही हिंदू होने का मातम मानते हैं।
इस वक़्त, इस महामूर्खता के बीच सबकुछ खण्ड- खण्ड होने की प्रक्रिया में भी मैं हिंदू हूँ और गर्वित हूँ। इसे अंडरलाइन समझें।
#औघटघाट
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