उदासी में भींजे हुए फाहे
कोई रख जाए सिरहाने तुम्हारे
कोई रख जाए सिरहाने तुम्हारे
तुम देखना आँखें उसकी
जब दीवारों पर ओझल होने लगे
उसके पीठ के निशान कहीं
तुम देखना आँखें उसकी
और शाम का आखिरी अंधेरा
उसकी शक्ल में डूबने लगे जब
तुम देखना आँखें उसकी
गर्मी की इन बोझिल दोपहरों से
जब तुम्हारा साथ छूट जाए
जब कोई किताब भी तुम्हारी टेबल पर न हों
तुम देखना
उसकी उंगलियों के बीच जो जगह है
वो तुम्हारे लिए है
दुनिया जब तुम्हे खींचकर
कुफ़्र की ओर ले जाए
तुम देखना
पूरब में उसका घर है
गर्मियों के आखिरी दिनों में
बारिशों से कुछ दिन पहले
जब तुम्हारी आँखों में
ठहर जाए बहुत सारा समंदर
जब बादलों का खाली हाथ लौटना रह जाए
तुम देखना आँखे उसकी
जब पैर रखने के लिए
कुछ बचा न हो पृथ्वी पर
तुम याद रखना
तुम्हें लिखने के लिए हमेशा जगह देती रहेगी
तुम बस देखना,
आंखें उसकी।
आंखें उसकी।
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