Tuesday, July 24, 2012

स्टारडम की भारी भरकम राख

वाह ! बेटा हम से पहले ही एक्जिट ले रहे हो. राजेश खन्ना की मृत्यु की खबर के बाद सबसे पहले इसी डायलॉग की ध्वनि कानों में गूंजती है. यह ऋषिकेश मुखर्जी की आनंद का डायलॉग हैं. जिसे जानी वॉकर राजेश खन्ना के सामने बोलते है. इसके बाद जानी वॉकर फूटकर रोते हुए कहते हैं - " मैं इतनी जल्दी परदा नहीं गिरने दूंगा "  लेकिन आनंद समय से पहले एक्जिट ले लेता है और परदा गिर जाता है हमेशा के लिए.
असल जिंदगी में भी राजेश खन्ना ने जल्दी ही एक्जिट ले लिया. यह अफ़सोस जनक रहा. आनंद की तरह ही राजेश खन्ना को भी कोई बचा नहीं सका. ना डॉक्टर, ना नीम हकीम और ना ही प्रार्थनाएं. जो कुछ बचा रह गया वह राख है - स्टारडम की भारी भरकम राख - इस राख का बोझ शायद काका स्वयं भी अपने साथ लेकर गए हो. सुपर सितारा नायक राजेश खन्ना ना रहने पर भी उन्होंने कभी स्वयं को खाली करने की प्रक्रिया में नहीं लगाया. काका ने ताउम्र अपने स्टारडम का भ्रम पाले रखा.
90 के दशक में राजेश खन्ना का दौर तक़रीबन पूरी तरह से खत्म हो गया था. बावजूद इसके वे 20 सालों तक अपने स्टारडम के साए का पीछा करते रहे. अपनी हेसियत खो देने की अंतहीन पीड़ा और छटपटाह्ट अंतिम  दिनों में भी उनके चहरे पर नज़र आई. अपना मंच खो देने का असहनीय दर्द सालता तो होगा नायक को. ऐसी विदाई कि वापसी भी नहीं. आराधना, आनंद, अमरप्रेम, बावर्ची और कटी पतंग में अपनी सोम्यता के साथ निरंतर बक-बक करने वाले नायक को दर्शकों ने अचानक स्थगित कर दिया. जंजीर और दीवार के गुस्सेल व गंभीर नायक ने प्रेमिका की बाहों में बेफिक्र झूलते लवर बॉय की इमेज को तत्काल खारिज कर दिया. अमिताभ बच्चन ने ना सिर्फ काका की एकाधिकार वाली जमीन हथिया ली बल्कि दर्शकों का भी उनसे मोह भंग हो गया.
ऋषिकेश मुखर्जी की सार्थक फिल्मों में अपना जादू चलाने वाला आनंद जीवन के निर्मल आनंद और उसकी सरलता को नहीं समझ पाया- राजेश खन्ना का यह स्थगन उन्हें महफ़िलों तक खीच लाया. सुपर स्टार का चमकीला अतीत, कैमरे की लाईट और हज़ारों तालियाँ, हर शहर में उनके लिए दीवानी लड़कियों का बेतकल्लुफ प्रेम- इन सब के बीच एक नायक का एकांत. वापसी के लिए कोई रास्ता नहीं- ना कोई समझोता. शराब, सिगरेट और अर्श से फर्श तक आये इंडियन सिनेमा के पहले सुपर नायक की पीड़ा - देर रात शुरू होने वाली महफ़िलें भोर तक उन्हें चट करती रही - जो मिट रहा था वह शरीर था - जो बचा रह गया वह राख.  राजेश  खन्ना के स्टारडम की भारी भरकम राख. 
" बूढा होना, क्या यह धीरे धीरे स्वयं को खाली करने की प्रक्रिया नहीं है ? नहीं है तो होनी चाहिए - ताकि मृत्यु के बाद जो लोग तुम्हारी देह को लकड़ियों पर रखें, तो उन्हें कोई भार महसूस ना हो - और अग्नि को भी तुम पर ज्यादा समय ना गंवाना पड़े - क्योंकि तुमने अपने जीवन काल में ही अपने भीतर वह सबकुछ जला दिया है जो लकड़ियों पर बोझ बन सकता था "  - राजेश खन्ना के फायनल एक्जिट के बाद निर्मल वर्मा की डायरी की यह पंक्तियाँ याद आ जाती है.

10 comments:

  1. atti sundar he bahut khub

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  2. मीडिया दबी आवाज में अपने सुपर स्‍टार को कोसता भी रहा है। राजेश्‍ा खन्‍ना ने बदलने में काफी देर कर दी, जो विज्ञापन उसने अंतिम समय किया, वो बहुत पहले शुरू कर देने चाहिए थे, मगर राजेश अमिताभ की तरह उभर नहीं पाया, झटकों से। अफसोस। अंत तक खाली कर देना चाहिए स्‍वयं को।

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  3. chandraparakash sharmaJuly 24, 2012 at 5:26 AM

    राजेश खन्ना के निधन के बाद प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने उन पर काफी मसाला परोसा...कुछ अनसुने पहलु भी उजागर किये..लेकिन जो बात आपने लिखी है वेसा साहस कोई नहीं जूता पाया..लम्बे अरसे बाद कुछ ऐसा पढ़ा जिससे ज़ेहन में विस्फोट हो और लगे कि कुछ करना चाहिए...निर्मल वर्मा कि पंक्तियों को जिस तरह से काका में पिरोया वह काबिले तारीफ़ है..ये काम वही कर सकता है जो उन पंक्तियों के मर्म को जानता हो...बहुत अच्छा लिखा है या यु कहे कहे कि सबसे अच्छा लिखा है...इतनी सामर्थ्य मुझमे नहीं है कि मै आपके लेखन कि समीक्षा या विश्लेषण कर सकू..एक अदना सा पाठक होने के नाते मेने अपने भाव व्यक्त कर दिए....शुभकामनाओ के साथ प्रतीक्षारत.....

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  4. रहना नहीं देस बिराना है...

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  5. bahut achha likha bhai..kamaal ka hai... keep posting like that....

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  6. लाइट , केमरा, एक्शन की आवाज़ जब कानो मैं आना बंद हो जाती है , तब जीवन का सही अभिनय शुरू होता है , जिसमे राजेश खन्ना फ्लॉप साबित हुए , लोगो का प्यार उन्हें बहुत मिला , वो इस सदी के सुपर स्टार है, वह लड्कियौं मैं जितने लोप्रिया रहे उतना कोई नहीं रहा ......वो एक संभ्रांत परिवार मैं पैदा ही , फिर उन्हें लोगो का इतना प्यार मिला ये सब कुछ खोना आसन नहीं था ..... वो भी एक ऐसे व्यक्ति के सामने जो उनके सामने फिल्मो मैं कदम रखा....मेरे ख़याल से ये सब कुछ राजेश खन्ना के सामने ये सब कुछ आसन नहीं रहा होगा ... उनकी जगह आप अपने आप को रख कर देखिये ... बहुत मिश्किल होगा ... मैंने कंही पड़ा था की डिम्पल ने उन्हें छोड़ दिया है ...मेरे ख़याल से डिम्पल से शादी भी उनके जीवन की त्रासदी रही होगी करियर के प्रति गंभीर लड़की से जो उन्हें करियर के लिए छोड़ भी सकती है , उन्हें उनकी सबसे ज्यादा ज़रूरत थी तब वो उनके साथ नहीं थी ...सब कुछ चला गया ....बेचारा ..मरता क्या ना करता "बाबु मुशाये "

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  8. How easy it is to comment on others, specially one who can't write back here to defend themselves. How easy to criticise either rajesh khanna or dimple, calling him inadjustible or her too engrossed in career to care for her husband. How easy it is to write learned words to indicate that they were worthless fools and we are so worthwhile. And how difficult it is to understand or even imagine the kind of pain they must have suffered. :(

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    1. It is not to comment or criticize, it is an analysis what every author has right to do, It is always not necessary to describe always good as media does only for their TRP or pampering the emotions of audience...if all needs to do so than whats the meaning of a blog....

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