Friday, June 29, 2018

‘किस तरयां दिल लागे तेरा सतरा चौ प्रकास नहीं’


वादा दरअसल एक पुल है। एक ब्रिज। एक बार वादा कर लो तो फिर आगे बढ़ता जाता है। वादा अगर बहुत दिनों तक निभ जाए तो फिर वह कमिटमेंट बन जाता है। खुद के साथ एक कमिटमेंट। इसके बाद यह एक लंबे सफर में बदल जाता है। एक लंबे वक्त में। फिर एक दिन ऐसा होता है कि जिससे वादा किया गया है, वो भी उस वादे की कद्र न करे तो भी तुम उसे तोड़ना नहीं चाहोगे। अतीत में किया गया वादा अब तुम्हारे लिए कमिटमेंट है।
लंबे समय तक एक विचार पर टिके रहना। एक यात्रा पर चलते रहना वादा ही है।
मेरे लिए वादा एक लंबा पुल है। कोई ब्रिज। रेल की पटरियां भी। लंबी सड़कें भी वादा है। पुल एक चीज को या एक इंसान को दूसरे इंसान या चीज से जोड़ते हैं। रेल की पटरियां रात- रातभर कई किलोमीटर तक तुम्हारे साथ जागती हैं। साथ रहने का वादा निभाती हैं। तब तक, जब तक कि तुम्हारा स्टेशन नहीं आ जाता। लंबी सड़कें तुम्हें वहां तक पहुंचाती हैं, जहां तक तुम जाना चाहते हो।
वादा एक एक सिलसिला जिसे तुम तोड़ना नहीं चाहोगे। जिंदगी की एक लय। जैसे एक लंबा राग। कोई आलाप बहुत लंबा।
मामला यह है कि एक वादे के मुताबिक बहुत दिनों से शराब नहीं पी। सिगरेट भी नहीं।
अकेला आदमी पूरी दुनिया का चक्कर काटकर अंत में चाय के ठेले और सिगरेट की दुकान पर ही लौटता है। वो यहां अपने सारे आध्यात्म को फूंककर दुनिया के छल्ले बनाकर हवा में उड़ाता है। यही उसका सबसे बेहतरीन कर्म है। उसकी जिंदगी का सार भी।
प्रेम में लौटा हुआ आदमी यहीं आता है। प्रेम में चूका हुआ आदमी भी यहीं पहुंचना चाहता है। चाय और सिगरेट के ठेलों पर। जीने या जिंदा रहने के एफर्ट से जूझता आदमी भी अपना दिन यहीं से शुरू करता है। उसकी शाम भी यहीं इन्हीं ठेलों पर आखिरी कश के साथ ख़त्म होती है। जो लोग ध्यान - योग नहीं करते, उनके लिए चाय और सिगरेट के ठेले ही अध्यात्म के असली केंद्र हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि किसी आश्रम या कम्यून की तरह इनके नाम नहीं होते। ये राजू पान भण्डार हो सकते हैं। या कोई महाकाल टी सेंटर। सांसारिक आदमी के लिए यही ठेले मुक्ति के द्वार हैं।
अंततः मुझे लगता है। हर आदमी ऐसी जगहों पर जाना चाहता है। या तो अकेला होने के कारण या फिर अकेला होने के लिए।
बहुत सारे धूएं के बीच किसी ठेले पर प्लास्टिक या लकड़ी की पुरानी कुर्सी पर लंबी ताड़ मार कर बैठने की लत मुझे हमेशा से आकर्षित करती है। बुलाती है। मुझे यह नहीं पता कि ऐसा क्यों होता है। अकेला होने के लिए या अकेला होने के कारण।
इसी मोह के कारण मैं सिगरेट की दुकान के सामने पहुंच जाता हूँ। लेकिन ठिठक जाता हूं। फिर आगे बढ़ जाता हूं। मैं फिर से अपने वादे पर लौट आता हूँ। मैं लंबी सड़कों पर चलना चाहता हूँ पैदल। रेल की पटरियों के साथ हज़ारों किलोमीटर जागना चाहता हूँ रातभर। कोई वादा बन जाना चाहता हूँ। किसी बड़े ब्रिज़ की तरह। कोई पुल। एक बड़े और लंबे ब्रिज़ की तरह कोई वादा हो जाना चाहता हूँ।
पुल का यह वादा होता है कि वह तुम्हें इस तरफ से उस पार तक पहुंचाएगा।
सड़क का वादा है कि वो तुम्हें उस शहर तक ले जाएगी।
गली उसके मोहल्ले तक।
जिंदगी का वादा है कि वो उम्र से गुजरेगी और तुम्हें मौत तक ले जाएगी।
आसपास बहुत भीड़ है। बहुत शोर। अकेली खामोशियाँ भी। बुझी हुई आंखें। धारदार ज़बान। तरह- तरह की चीजें हैं जिंदगी में। वॉश बेसिन के नल की आवाज। की-बोर्ड की आवाजें। काम है। थकान भी। खूबसूरत अंगड़ाईयां और दोपहर की उबासियां भी। कॉफी की खूश्बू। बहुत सी घुटी हुई आवाजें। इमेजेस हैं। एक छद्म दुनिया मेरी आंखों के सामने चक्कर काट रही है। मैं भी इसी चक्र का हिस्सा हूं। लेकिन चक्कर काटते हुए चक्कर को देख भी पा रहा हूं। इस चक्कर को देखने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं।
मेरे सबसे पसंदीदा हरयाणवी गीत के टेक्स्ट याद आ रहे हैं। ‘किस तरयां दिल लागे तेरा सतरा चौ प्रकास नहीं’। मां पार्वती भूत भावन भगवान भोलेनाथ के प्रेम में हैं। वे उनके साथ रहने के लिए निवेदन कर रही हैं। भोलेनाथ उन्हें इनकार करते हैं। मेरे साथ तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा। मेरे गले में सांप है। देह पर धूल राख और भभूत। भांग रगड़कर पीता हूं। तुम्हें मेरे साथ में कुछ हासिल नहीं होगा। मेरे जीवन में ऐसा कुछ नहीं है, जिससे तेरा मन लगा रहे। भोलेनाथ कह रहे हैं। ‘किस तरयां दिल लागे तेरा सतरा चौ प्रकास नहीं’
अर्थात,
दुनिया में कहीं भी रौशनी नहीं है, चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा पसरा पड़ा है। मैं तेरे लिए ऐसा क्या करुं, कौनसा गीत गाऊं कि इस दुनिया में तुम्हारा दिल लगा रहे।

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