खून में कुछ गर्म रवानी हो तो यकीं आए हम हिंदुस्तान में ही हैं, उम्र घिसे, चप्पल घिसे, घिसे न इमां तो तुम हिंदुस्तानी हो।
उस्ताद बिस्मिल्लाह खां एक एटीट्यूड था। मैं उन्हें शहनाई वादक से भी पहले इसी एटीट्यूड के साये के तौर पर देखता हूँ। हद इस क़दर कि अपने हर दूसरे- तीसरे आलेख में उस्ताद का ज़िक्र बरबस ही साया हो जाता है। अपनी मौसिक़ी के बेइंतेहा ऊंचे दौर में उन्हें हज़ार दफ़े अमेरिका ने अपने यहां बसाने के जतन किए। अमेरिका की रॉक फेलर संस्था ने खां साहब से गुज़ारिश की थी कि वे उन्हें अपने देस में बसाने के लिए मरे जा रहे हैं। अगर वे अपना देस छोड़ अमेरिका आ जाएं तो वहां बनारस की तरह उनके मन माफ़िक माहौल अता फरमाएंगे। वहां उनके लिए आला दर्जे के साज़ ओ सामां होंगे। उनकी ज़रूरत की हर एक चीज़ एक ताली पर उनके सामने हाज़िर होंगी। लेकिन उस्ताद एक एटिट्यूड था। उन्होंने जवाब दिया कि 'अमेरिका में बनारस तो बसा दोगे, लेकिन वहां मेरी गंगा कैसे बहाओगे'। मैं देख सकता हूँ, घोर नाउम्मीदी के वक़्त में भी दो जलेबी और एक पैप्सी का शौक़ीन हिंदुस्तान का यह फ़नकार अपने एटीट्यूड के साथ अब भी जिंदा है, गर आपको नज़र नहीं आता तो यह दीगर मसला है।
इसी के इर्दगिर्द एक थी ललिता देवी, लालबहादुर शास्त्री की पत्नी। पीएनबी बैंक घोटाले के संदर्भ में एक ज़िक्र आया है उनका। आर्थिक, सामाजिक और नैतिक अराजकता के इस दौर में यह बानगी बिल्कुल मुफ़ीद नहीं है। इस मिसाल का कौड़ीभर मोल नहीं। फिर भी, ज़िक्रभर जो था तो कर रहा हूँ। अपने प्रधानमंत्री रहते हुए शास्त्री जी ने समय की बचत को ध्यान में रखते हुए फ़िएट कार खरीदने का मन बनाया था, लेकिन उस वक़्त उनके पास कुल जमा सात हज़ार ही थे और कार की कीमत बारह हज़ार। पांच हज़ार का कर्ज़ शास्त्री जी ने इसी बैंक से लिया था जिसकी दुर्गति नीरव मोदी कर गया। कार खरीदने के एक साल बाद ही शास्त्रीजी की मृत्यु हो गई। इंदिरा गांधी ने बैंक को कर्ज माफ़ी की पहल की, लेकिन शास्त्रीजी की पत्नी ललिता देवी ने इनकार कर दिया और सालों तक इस कर्ज को अपनी पेंशन से चुकता कर दिया। छोटे कद के शास्त्री जी अपने एटीट्यूड में बड़े थे, ऐसा सुना था, लेकिन पत्नी ललिता देवी ऐसे एटीट्यूड की माँ- बाप थीं।
इन किस्सों का यूँ मोल तो कुछ भी नहीं, की हम सबको अपने एकाउंट में 15 लाख की प्रतीक्षा जो है। बावजूद इसके इन किस्सों से गर मेरे और तुम्हारे ख़ून में कुछ गर्म रवानी महसूस हो तो यकीं आए की हम हिंदुस्तान में ही रहते हैं।
उम्र घिसे, चप्पल घिसे, घिसे न इमां तो तुम हिंदुस्तानी हो।
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उस्ताद बिस्मिल्लाह खां एक एटीट्यूड था। मैं उन्हें शहनाई वादक से भी पहले इसी एटीट्यूड के साये के तौर पर देखता हूँ। हद इस क़दर कि अपने हर दूसरे- तीसरे आलेख में उस्ताद का ज़िक्र बरबस ही साया हो जाता है। अपनी मौसिक़ी के बेइंतेहा ऊंचे दौर में उन्हें हज़ार दफ़े अमेरिका ने अपने यहां बसाने के जतन किए। अमेरिका की रॉक फेलर संस्था ने खां साहब से गुज़ारिश की थी कि वे उन्हें अपने देस में बसाने के लिए मरे जा रहे हैं। अगर वे अपना देस छोड़ अमेरिका आ जाएं तो वहां बनारस की तरह उनके मन माफ़िक माहौल अता फरमाएंगे। वहां उनके लिए आला दर्जे के साज़ ओ सामां होंगे। उनकी ज़रूरत की हर एक चीज़ एक ताली पर उनके सामने हाज़िर होंगी। लेकिन उस्ताद एक एटिट्यूड था। उन्होंने जवाब दिया कि 'अमेरिका में बनारस तो बसा दोगे, लेकिन वहां मेरी गंगा कैसे बहाओगे'। मैं देख सकता हूँ, घोर नाउम्मीदी के वक़्त में भी दो जलेबी और एक पैप्सी का शौक़ीन हिंदुस्तान का यह फ़नकार अपने एटीट्यूड के साथ अब भी जिंदा है, गर आपको नज़र नहीं आता तो यह दीगर मसला है।
इसी के इर्दगिर्द एक थी ललिता देवी, लालबहादुर शास्त्री की पत्नी। पीएनबी बैंक घोटाले के संदर्भ में एक ज़िक्र आया है उनका। आर्थिक, सामाजिक और नैतिक अराजकता के इस दौर में यह बानगी बिल्कुल मुफ़ीद नहीं है। इस मिसाल का कौड़ीभर मोल नहीं। फिर भी, ज़िक्रभर जो था तो कर रहा हूँ। अपने प्रधानमंत्री रहते हुए शास्त्री जी ने समय की बचत को ध्यान में रखते हुए फ़िएट कार खरीदने का मन बनाया था, लेकिन उस वक़्त उनके पास कुल जमा सात हज़ार ही थे और कार की कीमत बारह हज़ार। पांच हज़ार का कर्ज़ शास्त्री जी ने इसी बैंक से लिया था जिसकी दुर्गति नीरव मोदी कर गया। कार खरीदने के एक साल बाद ही शास्त्रीजी की मृत्यु हो गई। इंदिरा गांधी ने बैंक को कर्ज माफ़ी की पहल की, लेकिन शास्त्रीजी की पत्नी ललिता देवी ने इनकार कर दिया और सालों तक इस कर्ज को अपनी पेंशन से चुकता कर दिया। छोटे कद के शास्त्री जी अपने एटीट्यूड में बड़े थे, ऐसा सुना था, लेकिन पत्नी ललिता देवी ऐसे एटीट्यूड की माँ- बाप थीं।
इन किस्सों का यूँ मोल तो कुछ भी नहीं, की हम सबको अपने एकाउंट में 15 लाख की प्रतीक्षा जो है। बावजूद इसके इन किस्सों से गर मेरे और तुम्हारे ख़ून में कुछ गर्म रवानी महसूस हो तो यकीं आए की हम हिंदुस्तान में ही रहते हैं।
उम्र घिसे, चप्पल घिसे, घिसे न इमां तो तुम हिंदुस्तानी हो।
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