अपने दोस्त सोनू उपाध्याय के साथ मुंबई में गुजारे कुछ खास दिनों की याद में...
अब लिखना है मुश्किल
उतना जितना प्रेम का मिल जाना
इस से तो अच्छा है कि टपक जाये एक आंसू छम से
और तुम सुन सको उसका गिरना
और तुम मुझे लेने आओ
उसी पहली बार की तरह
या फिर साथ चलो पटरियों के किनारों पर
या फिर साथ चलो पटरियों के किनारों पर
और बताओ मुझे कि देखो वो मरीन ड्राइव है और ये बेंडस्टैंड
सेकड़ों फास्ट और लोकल के बीच भी
कितने लोकल थे हम दोनों
इतना कि किसी को जानते नहीं थे
सिवाय एक दुसरे के
बस! यही एक जानकारी थी कि
बस! यही एक जानकारी थी कि
हम दोनों है
कैसे रहे हम इतने लोगों के बीच
सिर्फ अपना अपना होकर
तुम कितने तुम्हारे
और मैं कितना खुद मेरा था
मुश्किल है बहुत अब तुम्हारा नाम लेना
या तुम दोहराओ मुझे
इस से तो अच्छा है कि
हम खड़े रहें ट्रेन के इंतज़ार में
या गेट पर खड़े होकर सुने हवाओं को
या उतर जाये यूँही कभी हाजी अली पर
या भीग आयें खारे पानी में
और जब लौटे कमरे पर
तो हमारे पैरों की उँगलियों में रेत चिपकी हो
मैं सिगरेट पीता रहूँ
और तुम्हे
अच्छे लगे छल्ले उसके
या चलते रहे चर्चगेट की सड़कों पर
थककर हार जाने के लिए
चूर हो जाने तक
हम तस्वीरें नही
मांस और खूं भी नहीं
जादूगर तुम भी नहीं
मैं भी नहीं
पर जादू है कुछ
जिस से सांस आती है
सांस जाती है
तुम बस मेरा मिजाज लौटा देते हो
साल दर साल किश्तों की तरह
और में जिन्दा रहता हूँ
तुम्हारी चुकाई हुई उन किश्तों के सहारे
स्मृतियाँ मन को पुनः उसी परिवेश में ले जाती हैं।
ReplyDeleteनवीन......मै सोनू के साथ बिताये गये तुम्हारे मुंबई के अनुभव पढ़ रहा था ...पढ़ कर लगा वाकई नवीन कितनी बारीकी और सिद्दत के साथ किसी चीज पर नज़र डालता है....पढ़ कर बहुत अच्छा लगा जीवनभर तुम दोनों की दोस्ती बरकरार रहे ...
ReplyDeleteभारत श्रीवास्तव
bahut achchhe ||
ReplyDeleteमन के भाव बहुत खूबसूरती से उकेरे हैं
ReplyDeletemujhe un dino ki yaad aa gayi jab mein mumbai aaya tha. kaafi umda vyakyaan kiya hai sonu jee ne aur wo kaafi kaabile taarif hai. Is baat ko kitne khoobsurat tareeke se pesh kia hai ki man ke sab bhav khil uthe hai.
ReplyDeleteNavin ji, aapki likhi yeh kavia man ko chhu kar gayi.
ReplyDelete..is bar bhi jab aap mumbai aayenge toh, woh aako lene aayenge ..उसी पहली बार की तरह
bahut accha laga paddhkar.... thank you
ReplyDeleteऔर जब लौटे कमरे पर
ReplyDeleteतो हमारे पैरों की उँगलियों में रेत चिपकी हो
स्मृतियाँ ...
kabhi humse bhi milne aao, aur d0 char kavita likh do..
ReplyDeleteयही होता है दोस्त, एक दोस्त हमारा मिज़ाज़ लौटा देता है और ज़िंदगी थोडी और बढ जाती है... उन यादों में कटने के लिये..
ReplyDeleteNavin tuhari kavita bhut sundar hai, pataa nahi kyo dill ko kaafi kareb sai chuti hai,mane sonu ki kavita bhi padhi hai, par tum kuch jaad kareeb lagte ho jindgi kai,,
ReplyDeletenavita
kamal likha hai , koi shak nahi ki tum apne charam ki or agraser ho.badhai ho apne sahi marg pe chalne ke liye.
ReplyDeletekamal likha hai , koi shak nahi ki tum apne charam ki or agraser ho.badhai ho apne sahi marg pe chalne ke liye.
ReplyDeleteपहली बात ये कि तुमने वो अदा अख्तियार कर ली है जो लेखन के लिए ज़रूरी तत्त्व है. यानी तुम जो कहना चाहते हो, कह पा रहे हो. बधाई.
ReplyDeleteदूसरी बात ये कि तुमको लिखते रहना चाहिए. तुमसे उम्मीदें हैं बहुत.
तीसरी बात ये कि अब तुमको कुछ और भी जादू जगाना चाहिए. स्मृतियों से कुछ और आगे... कुछ अभी की बात हो जैसे.
चौथी... ये कि ऐसी भी कोशिश करो कि बात आसानी से समझ में आये. कम्युनिकेशन बेहद ज़रूरी है, और सार्थक भी.
पांचवी ये कि .....जल्द ही मुलाकात करो हम इस पर और डिटेल बात करना चाहेंगे.
-अवधेश प्रताप सिंह