Saturday, June 12, 2010

शेरी, कोन्याक, स्लिबो वित्से

मुझे रायना से प्रेम हो गया है
और प्राग से भी
वो खुबसूरत है
प्राग की सफ़ेद बर्फ की तरह
किताब में लिखी रायना से कहीं अधिक

वह मेरी आखों में है
शब्दों से बाहर निकल सांस लेती हुई


सच कहा था तुमने
यह किताब एक नशा है

शेरी, कोन्याक, स्लिबो वित्से
और सिगरेट की बेपनाह धुंध
कार्ल मार्क्स स्ट्रीट बहक गई होगी
नशे में चूर होंगे
वहां के नाईट क्लब्स

वहीं किसी बार में
उदास बैठी होगी मारिया
रायना को खोजते होंगे निर्मल वर्मा
प्राग के खंडहरों में

मुझे रायना से प्रेम हो गया है
और प्राग से भी .

6 comments:

  1. wo ab bhi mujhe prem karti hogi .apni is murkhata par mai ek peg our pi jata hoon.......
    pram to sundar hi hota hai....kabhi-kabhi kurdura.

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  2. rayna aur prag se prem........prem ho gayaa ya kar liyaa ya karnaa paDaa....rachnaa me teeno stithiyaan hain.....ab tay kaun kare ki raynaa se adhik prem hai prayaag se?

    Moksha....Vichaar khoobsoorat hai...ise saheje rakhnaa....Shubhkamnaayein.....

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  3. ब्रश..................... करने के लिए, स्याही, या भाला ध्वनि करता है,संतुलन को समझने असमर्थता अराजकता......... यह एक नाड़ी, आयाम,लोग, भूमि मौन ,
    वह अपने होंठ के मांस को निर्धारित करता है,केवल सच यह है कि शब्द भी झूठ,एक सौ शब्दों " पानी"............ पहेली बादल........ नदी. वहाँ शब्दों के दो प्रकार , बात- जो मौन हैं

    "अगर वहाँ
    मौन था,
    चुप अस्तित्व"

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  4. निर्मल वर्मा प्रेमी हैं आप भी...:)

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  5. I cοuldn't refrain from commenting. Perfectly written!

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