
घर चली आती है
साथ- साथ
उनकी खुमारियां
साथ सोती है बिस्तर पर
हत्या
जिन्दा जलाया
अधमरा तडपता रहा सड़क पर
जिला अस्पताल
मौत
रात के ठहाके जरुरी है
कांच के गिलासों के साथ
सुबह के वक़्त
क्योंकि मुस्कुराना मुश्किल है
हो सकता है
ऐसे मुस्कुराने पर हंसी आ जाये
पर इस सुबह होंठ हिल ही गए
दिनों बाद ब्रुनो भी
इस सुबह सैर पर साथ गया
उसने भी जमकर ख़ुशी मनाई
सुबह ... आह !
नीली - सफ़ेद
छोटी- छोटी स्कर्ट
कुछ पाँव-पाँव
कुछ साइकिलों से
स्कूल जाती लड़कियां
हम खुश थे
संसार सुन्दर था
एक साथ
स्कूल जाते
बहुत सारे बच्चे
एक अपनी पीठ पर
कद से बड़ी
गिटार लटकाए
म्यूजिक क्लास जाता हुआ
कहीं निर्मल वर्मा की नॉवल का
कोई लैंडस्केप तो नहीं !
कोई छद्म या कल्पना कोई
या असत्य
क्या सच संसार है
या दिखता है सिर्फ
कुछ तो होगा
सुबह लिखी गई
इस कविता के तरह
कविता !
कई उदास
नीरस रातों के बाद
फ्लेशबेक में रखी हुई
एक किताब
वह पंक्ति
यह संसार एक दिन अवश्य सुन्दर बनेगा