Sunday, August 30, 2009
हिटलर ने कहा था
भारत को भारत की चुनौती
26/11 के मुंबई पर फिदायीन हमले के बाद मुझे कुछ दोस्तों या यूँ कहे कि कुछ जान पहचान के लोग मिले तो मिलते ही उन्होंने कहा '' भोत बम फुड़वा रिये हो आजकल '' उनके कहने का अर्थ था कि मुंबई में बम विस्फोट मैंने करवाए। उन्हें यह नहीं पता कि यह बम विस्फोट नहीं हमला है। मुंबई पर एक सीधा हमला भारत को चुनौती। इसी तर्ज पर कुछ और लोगो के फोन मेरे पास आए, उनका पहला वाक्य भी यही था '' क्यों भिया भोत विस्फोट करवा रिये हो बम्बई में '' ये हमारे देश के आम नागरिकों के मुंबई हमले पर व्यंग्य थे या कहें कि प्रतिक्रियाएँ थीं।
जिन लोगों की बात मैं कर रहा हूँ वे मामुली से अखबारी लोग या पत्रकार है लेकिन आम नागरिकों के तौर पर उन्हें देखा जाए तो वे बहुत ताकतवर हैं। जनता बहुत ताकतवर होती है। जनता ही ताकत होती है। जब लाखों-करोड़ों अलग-अलग व्यवसाय या क्षेत्र से जुड़े लोगों का विचार बिन्दू एक ही हो जाए या सभी का विचार एक ही बिन्दू पर केंद्रित हो जाए तो वे पत्रकार, डॉक्टर और अध्यापक नहीं रह जाते वे जनता हो जाते हैं लेकिन जनता में से जब कुछ लोग देश पर इस तरह के हमले के बाद ऐसी प्रतिक्रियाएँ दें तो सोच लीजिए कि हमें किस 'विचार' की जरूरत है।
भारत को पाकिस्तान की चुनौतियाँ
कांधार अपहरण
24 दिसबर 1999 में भारत के इंडियन एयर लाइंस-814 विमान का अपहरण कर लिया गया, जो नेपाल के काठमान्डू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हावई अड्डे से उड़कर दिल्ली जाने वाला था, विमान में 180 लोग सवार थे। विमान के सभी 180 यात्रियों को बंधक बनाकर अफगानिस्तान ले जाया गया और उन्हें छोड़ने के लिए फिरौती और भारत में बंद 180 आतंकवादियों को छुड़वाने की माँग की गई। भारत को अपहरणकर्ताओं की माँगें मानना पड़ी और तीन कट्टर मुस्लिम आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा। भारतीय विदेश जसवंत सिंह स्वयं कांधार गए और मौलाना मसूद अजहर, मुश्ताक अहमद जारगर और अहमद उमर सईद शेख को सौंप कर आए।
संसद पर हमला
13 दिसंबर 2001 में दिल्ली में भारत की संसद पर आतंकियों ने हमला किया। हमले के 40 मिनट पहले ही लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही स्थगित कर दी गई थी। माना जाता है कि तात्कालिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपयी और विपक्ष की नेता सोनिया गाँधी हमले के कुछ देर पहले ही संसद से निकले थे, जबकि लालकृण आडवाणी और कई नेता हमले के समय संसद में ही थे।
इन दो उल्लेखनीय हमलो के अलावा कई बार भारत को पाकिस्तान के विरुध्द प्रमाण मिले। भारत ने पाकिस्तान से जवाब तलब किया। पाकिस्तान ने हमेशा ही की तरह अपहरण, बम धमाकों, आतंकी हमलों में अपना हाथ न होने का राग आलापा, पुख्ता प्रमाण पेश करने की माँग की और अपना पल्ला झाड़कर बच निकला। बावजूद इन सब के भारत की भुमिका उल्लेखनीय नहीं रही। बस सेवाएँ, रेल सेवाएँ बंद की गई फिर शांति प्रक्रिया के तहत इन सेवाओं को बहाल किया गया। नए और मजबुत संबंधों की चिल-पुकार में कई निरर्थक प्रयास किए गए और इसी शांति प्रक्रिया के दौरान भारत के दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर, अहमदाबाद, सुरत, जयपुर, वाराणसी जैसे शहरों पर हमले बदस्तूर जारी रहे।
भारत: बहस का एक अदद मंच
भारतीय अखबार और समाचार चैनल्स भारत-पाक संबंधों पर बहस, आतंकवाद पर बहस और भष्ट्राचार पर बहस से पटे पड़े हैं। बहस का कोई अंत नहीं और नाहीं कोई परिणाम निकलता है, लेकिन पत्रकारों, बुध्दीजीवियों और साहित्यकारों ने मिलकर इस देश को बहस का एक अदद मंच बनाकर रख दिया है। वर्तमान स्थति में भारत एक Debating Society बन गया है। भारत एक (sovereign country) स्वतंत्र देश है। इसकी सम्प्रभुता पर कई बार हमला हुआ है। यह एक सीधी चुनौती है अगर बहस करने वाला समाज इसे चुनौती माने तो। नहीं तो सीधी सी बात है कि पाकिस्तान पर हमला नहीं करे तो कम से कम भारत अपना बचाव तो कर ही सकता है।
सोचना यह है कि भारत अपना बचाव किस रूप में करे। बचाव कर के बचाव करे या हमला कर के बचाव करे। '' हिटलर ने कहा था आक्रमण ही बचाव है ''
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हिटलर ने कहा था कि आक्रमण ही बचाव है , पर हिटलर की मौत रूस पर हमले के दौरान हुई । अनावश्यक हमले ने जर्मनी को मुसीबत में फंसा दिया था । हिटलर कायर था सो उसने आत्महत्या कर ली । पाकिस्तान पर हमला करना बेहद आसान है , पर एक जंग से उबरना बहुत मुश्किल होता है । इसकी क्या गारंटी है कि पाकिस्तान पर हमला कर देने के बाद हम आतंकी हमलों से सुरक्षित हो जाएंगे ? दीपक असीम
ReplyDeleteआक्रमण ही अंतिम उपाय नहीं है. हमारे देश को एक और चाणक्य कि ज़रुरत है.....rdh
ReplyDeleteबिलकुल आक्रमण की जरूरत नहीं है | हमें और हमारे बच्चो को मरने की आदत हो चुकी है | हम कायर है लड़ नहीं सकते, कम से कम गाँधी और अंग्रेजो ने इतना तो किया ही है | हम राम तो है नहीं की सबकी की रक्षा का भर हमारे ऊपर हो ? हम राम तो नहीं है जो अपने ही बीवी और बच्चो को किसी के कहने से त्याग दे ? हम राम तो नहीं है की हमारे ऊपर कोई नैतिक जिमेदारी है की गलत बात को रोकने के लिए आवाज बुलंद करे और दुश्मनों को उनके किये की सजा दे ?
ReplyDeleteकिसी भी देश को आजाद रहने के लिए हमेशा से कुर्बानी देनी पड़ी है ......... और सम्मान के लिए लगातार लडाई लड़नी पड़ती है ........ जो नहीं लड़ सकते वो इरान की तरह १७ साल में मुस्लिम राज्य बन जाते है या कश्मीर की तरह हड़प लिए जाते है और फिर तरह तरह की कहानिया सुना के वजहे बताई जाती है .........