Friday, May 11, 2018

कन्फर्मेशन से बेहतर है आरएसी का टिकट


अंधेर रात। खिड़कियों से आती गर्म हवाएं। रातभर पटरियों पर थाप लगाती ट्रैन वक़्त को एक रिदम में पिरो रही हैं। लोहे की चोट से निकलने वाले इस संगीत को हमेशा के लिए अपनी 'प्ले लिस्ट' में शामिल किया जा सकता है।
चार सौ साठ किलोमीटर लम्बी यह पूरी रात एक लाइव कन्सर्ट में तब्दील हो गई है। कंसर्ट की रेड और ब्लू लाइट से इतर यहाँ खिड़कियों से बाहर अंधेरी और लैम्पपोस्ट की पीली रोशनियों का आलोक इस अंधेरे शो की संगत कर रहा है।

ऐसी ही किसी ऊंघती हुई रात में 'ऑपेथ' ने अपने रॉक की धुनें बनाई होगी। 'लेड ज़ेप्लिन' ने जेज़ तैयार किया होगा। व्हाइट पेपर पर लाइनों के बीच गीतों की नोटेशन उकेरी होगी।- हो सकता है ऐसे ही किसी अंधेरे में लेओनार्द कोहेन ने 'थाउजेंड किसेज़ डीप' गाया हो। या उसने लिखा हो कि 'डांस विद मी टू द एंड ऑफ लव'

कौन जानता है, मुक्तिबोध ने ऐसी ही किसी रात में 'चाँद का मुँह टेढा है' लिखी हो।

कौन जाने, रात की सारी कविताएं ऐसे ही अंधेरे में लिखी गई हों।

इस अंधेर शो के दीगर यहां ट्रैन के भीतर रात की सौदेबाजी चल रही है। सीट की और टिकटों की सौदेबाजी। उनींदी आंखों के साथ लोग कम्पार्टमेंट में टहल रहे हैं। कुछ अपनी जगह तलाश रहे हैं। कुछ टिकट जांचने वाले सरकारी रेलवे कर्मचारी को रिझा रहे हैं।

कुछ बूढ़े और मोटे लोग इसलिए सीट बदलना चाहते हैं, क्योंकि वे ऊपरी बर्थ पर नहीं चढ़ पा रहे हैं। मूत्र रोग से पीड़ित कुछ बेलौस महिलाएं बार-बार आ- जा रही हैं। कंपार्टमेंट कुछ बहुत गंदी उबासियों और कुछ बहुत खूबसूरत अँगडाइयों से भरा है।

नींद कई तरह की गंदगी और तकलीफों को रफ़ादफ़ा कर देती है। सोया हुआ आदमी जिंदगी की बहुत सी चीज़ों को स्किप कर देता है, जिसमे सुख और दुख दोनों शामिल है।

'कंफर्मेशन' से कई बार बहुत कुछ खो जाता है, जैसे प्रेम की स्वीकृति। इसके विपरीत 'आरएसी' और 'वेटिंग' से बहुत कुछ हासिल है।

कुछ साये बेवज़ह अंधेरे में भटक रहे हैं। नींद सबका शिकार करती है, जो नहीं सो रहे उनका भी। जिनके पास नींद है, उनके पास जगह नहीं। जिनके पास जगह है उनमें से ज्यादातर लोग पेशाब की तेज़ गंध से बेपरवाह गहरी नींद में हैं।

यह लिखते हुए फ्रांज़ काफ़्का की पंक्ति याद आ गई। 'राइटर्स स्पीक स्टेन्च'। शायद उनका यही मतलब हो, शायद यह मतलब न भी हो।
--