Sunday, June 20, 2010

काफ्का, कामू और बोर्खेज

देह भटकती है
अपने ही अन्दर
हांफ जाने तक
हांफ कर तिड़क जाने तक

तड़पती है किताब दर किताब
पेज दर पेज
काफ्का, कामू और बोर्खेज

शब्दों के अंतहीन अजगर
रेंगते है उसके बिस्तर पर
एक बेतरतीब कमरे की कोख में
छटपटाती है देह रात भर.

Saturday, June 12, 2010

शेरी, कोन्याक, स्लिबो वित्से

मुझे रायना से प्रेम हो गया है
और प्राग से भी
वो खुबसूरत है
प्राग की सफ़ेद बर्फ की तरह
किताब में लिखी रायना से कहीं अधिक

वह मेरी आखों में है
शब्दों से बाहर निकल सांस लेती हुई


सच कहा था तुमने
यह किताब एक नशा है

शेरी, कोन्याक, स्लिबो वित्से
और सिगरेट की बेपनाह धुंध
कार्ल मार्क्स स्ट्रीट बहक गई होगी
नशे में चूर होंगे
वहां के नाईट क्लब्स

वहीं किसी बार में
उदास बैठी होगी मारिया
रायना को खोजते होंगे निर्मल वर्मा
प्राग के खंडहरों में

मुझे रायना से प्रेम हो गया है
और प्राग से भी .