अब लिखना है मुश्किल
उतना जितना प्रेम का मिल जाना
इस से तो अच्छा है
कि टपक जाये एक आंसू छम से
और तुम सुन सको उसका गिरना
इस से तो अच्छा है
कि मैं खड़ा रहूँ अतीत के बम्बई में
सायन की गली हो
और तुम मुझे लेने आओ
उसी पहली बार की तरह
या फिर साथ चलो पटरियों के किनारों पर
और बताओ मुझे कि देखो
वो मरीन ड्राइव है और ये बेंडस्टैंड
सेकड़ों फास्ट और लोकल के बीच भी
कितने लोकल थे हम दोनों
इतना कि किसी को जानते नहीं थे
सिवाय एक दुसरे के
बस! यही एक जानकारी थी कि
हम दोनों है
कैसे रहे हम इतने लोगों के बीच
सिर्फ अपना अपना होकर
तुम कितने तुम्हारे
और मैं कितना खुद मेरा था
मुश्किल है बहुत
अब तुम्हारा नाम लेना
या तुम मेरा नाम दोहराओ
इस से तो अच्छा है कि
हम खड़े रहें ट्रेन के इंतज़ार में
या गेट पर खड़े होकर
सुनते रहें हवाओं को
या उतर जाये यूँही हाजी अली पर
या भीग आयें खारे पानी में
और जब हम लौटे कमरे पर
तो हमारे पैरों की उँगलियों में रेत चिपकी हो
या चलते रहे चर्चगेट की सड़कों पर
थककर हार जाने के लिए
चूर हो जाने तक
सच कहूँ तो हम कुछ भी नहीं
न तस्वीरें न मांस और खून
और न ही कोई जादूगर
तुम बस मेरा मिजाज लौटा देते हो
साल दर साल
किश्तों में
और में जिन्दा रहता हूँ
तुम्हारी चुकाई हुई
उन किश्तों के सहारे