Thursday, March 16, 2023

किताब अनजान मुलाकात है

किताबें एक अनजान मुलाकात है, अचानक किसी अजनबी से स्टेशन पर टकरा जाना. सड़क पर चलते हुए किसी बहुत पुरानी गंध से चौंक जाना. विस्मित हो जाना की इसके पहले यह गंध कहां मिली थी. यह एतबार करने के लिए देर तक सोचते रहना की आखिर आदमी और शब्द के बीच ये कौन- सा रिश्ता है.

किताबें अपने पढ़े जाने का स्वप्न देखती हैं, किताबें इंतजार की सबसे तटस्थ प्रतिमाएं हैं. वो अमूर्त का मूर्त हैं. वो आंखों और हथेलियों का स्पर्श चाहती हैं--- बगैर अपनी चाह को जाहिर किए. किताबें चाहती हैं की कोई उनके साथ वैसे ही सिसके, जैसे वो सिसकती रही हैं और फूटकर रोती रही हैं.
उनका इंतज़ार लाइब्रेरी के सन्नाटे में चीखता सा सुनाई देता है. वो खुलना चाहती हैं, अपने पन्नों में उड़ना चाहती हैं.
कोई एक किताब घर आना चाहती है, पढ़ी जाने के लिए. याद र

खी जाने के लिए. जब भी कोई किताब घर लाना अपने दिल पर हाथ रख लेना.
किताबें नहीं चाहती की हजारों रुपए लुटाकर उन्हें शॉपिंग बैग में भरकर घर के किसी कोने में पटक दिया जाए. वो यह नहीं चाहती की उनके होने के कारण से ज्यादा उन पर मिलने वाले डिस्काउंट पर खुशी ज़ाहिर की जाए.
इसलिए मैं थोक में किताबें नहीं खरीदता. किताबें खरीदना शॉपिंग नहीं, किताबें खरीदना खुशी है. यह एक साथ ढेर सारे शर्ट और दर्जनों मोजे खरीदने की तरह नहीं है.
किताबें पढ़ना इस जलती हुई अंधेर दुनिया में स्वप्न देखना है. भीतर से छनकर आती हुई रोशनी का स्वप्न देखना.