नवीन ये कविता मुझे बिल्कुल भी समझ नहीं आई... मुझे डर है कि हिन्दी में महज शब्दों के चुंटिले, व्यंजनात्मक रूप से लिखे जा रहे विन्यासों को आकर्षण के साथ कागज पर उतारने की प्रवत्त्ति के तुम भी तो शिकार नहीं हो गए हो. बेहतर होगा कि तुम इस बार ब्लॉग पर विनीत कुमार का एक बेहद सार्थक आलेख नया ज्ञानोदय के अंक में देखो वह ब्लॉग पोस्ट के बारे में क्या कहते हैं. किस तरह से एक बडा तबका बिना कुछ जाने-समझे बस लिखे जा रहा है...और वैसे ये भी हो सकता है कि ये एक बच्छी कविता हो..पर यथार्थ ये है कि मुझे ये समझ में नहीं आई
नवीन ये कविता मुझे बिल्कुल भी समझ नहीं आई... मुझे डर है कि हिन्दी में महज शब्दों के चुंटिले, व्यंजनात्मक रूप से लिखे जा रहे विन्यासों को आकर्षण के साथ कागज पर उतारने की प्रवत्त्ति के तुम भी तो शिकार नहीं हो गए हो. बेहतर होगा कि तुम इस बार ब्लॉग पर विनीत कुमार का एक बेहद सार्थक आलेख नया ज्ञानोदय के अंक में देखो वह ब्लॉग पोस्ट के बारे में क्या कहते हैं. किस तरह से एक बडा तबका बिना कुछ जाने-समझे बस लिखे जा रहा है...और वैसे ये भी हो सकता है कि ये एक बच्छी कविता हो..पर यथार्थ ये है कि मुझे ये समझ में नहीं आई
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