Sunday, August 30, 2009
होली
हम हँसते है
दौड़ लगाते है सड़कों पर
अपने चेहरों पर हजारों रंग लगाए .
थक जाते है , हांफ जाते है
लेकिन पीछा करते रहते है
दूसरों के चहरो को रंगने के लिए
कितना खुश है हम
कि जीवन के कितने रंग लगा लिए है
अपने चहरो पर हमने .
हम हंसते रहते है अपना पेट पकड़ कर .
लगातार रंगो से खेलते हुए
हम उत्सव मनाते है
मानो अपने मुखौटे उतारकर
फैक दिए हो हमने कहीं .
कुछ देर ही सही
पर हम अपने अंदर आ जाते है .
हम स्वयं हो जाते है .
लेकिन हमे अखरता है
हमारा अपना होना
डरते है हम अपने ही रंगो से
और घीस - घीस कर साबुन से
बहा देते है नालियो मै
हम अपने ही चेहरो को
और स्वयं को
पहन लेते है
वही भावशुन्य मुखौटा
जिसका अपना कोई रंग नही .
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आपको तथा आपके समस्त परिजनों को होली की सतरंगी बधाई
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