मैं खुदा का बंदा नही
एक अदद कीड़ा हूँ
इंसानी जिस्म में.
हर शाम पिघल कर
रिस जाता हूँ सड़कों पर.
चिपक जाता हूँ
कई जूतों और चप्पलों में.
कुचल दिया जाता हूँ
तितलियों से प्रेम करने के पाप में
बागों में विचरण के अपराध में.
मैं खुदा का बंदा नहीं
पतंग हूँ अटकी हुई
कई बार उतार ली जाती हूँ
या बाँट ली जाती हूँ
लुटे हुए खजाने की तरह.
मैं रस्सी हूँ
कपड़े सुखाने की
टूटे रिश्तों की तरह
जिसे सिर्फ बँधे रहना हैं
कपड़ों की तरह रखी नही जाती अलमारियों में.
मैं खुदा का बंदा नहीं
पक्षी हूँ
बिजली के तारों पर बैठा
कभी तुम पर
तो कभी तुम पर
ठहर जाता हूँ.
मैं जानता हूँ फर्क
कीड़े, पतंग्, रस्सियों
और तितलियों के बीच का
फर्क प्रेम और घृणा के बीच का.
मगर यूँ ही कभी-कभी
गुस्ताखी कर जाता हूँ
जिंदगीयो तुमसे.
एक अदद कीड़ा हूँ
इंसानी जिस्म में.
हर शाम पिघल कर
रिस जाता हूँ सड़कों पर.
चिपक जाता हूँ
कई जूतों और चप्पलों में.
कुचल दिया जाता हूँ
तितलियों से प्रेम करने के पाप में
बागों में विचरण के अपराध में.
मैं खुदा का बंदा नहीं
पतंग हूँ अटकी हुई
कई बार उतार ली जाती हूँ
या बाँट ली जाती हूँ
लुटे हुए खजाने की तरह.
मैं रस्सी हूँ
कपड़े सुखाने की
टूटे रिश्तों की तरह
जिसे सिर्फ बँधे रहना हैं
कपड़ों की तरह रखी नही जाती अलमारियों में.
मैं खुदा का बंदा नहीं
पक्षी हूँ
बिजली के तारों पर बैठा
कभी तुम पर
तो कभी तुम पर
ठहर जाता हूँ.
मैं जानता हूँ फर्क
कीड़े, पतंग्, रस्सियों
और तितलियों के बीच का
फर्क प्रेम और घृणा के बीच का.
मगर यूँ ही कभी-कभी
गुस्ताखी कर जाता हूँ
जिंदगीयो तुमसे.
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