वो सफ़ेद में थी
और मैं सफ़ेद में
उसकी आँखें
बहुत सारा काजल
पानी ...
बस की रफ़्तार
पीछे छुटते हुए
उस वक़्त के
पेड़, हवा
उस वक़्त की
एक नदी
आँखें ... काजल ... पानी
नशा ... क्या ...?
मैं जब्त होता गया
हासिल कुछ भी नहीं
सिवाय सफ़ेद
और वक़्त के
खोया भी कुछ नहीं
सिवाय सफ़ेद
और वक़्त के
superb!!!
ReplyDelete-awdhesh p singh
नवीन कविता में भाव प्रधानता इतनी है कि शब्द काफी कम और कविता पर भारी लग रहे हैं... बिम्ब बेहद सघन है तुमने पाठक के लिए जरा भी स्पेस नहीं छोडी है.. लगता है मानों केदारनाथ अग्रवाल की कोई कविता पढ रहा हूं.. पर कुछ अंतर है.. सच बताउं तो एक सामान्य पाठक की तरह मैं कुछ पकड ही नही पाया.. सफेद के बिम्ब के साथ तुम क्या कहना चाहते हो मैं नहीं समझ पाया हूं.. हां शायद कोई लडकी है.. बहरहाल, तुम्हारी अब तक कि सबसे अच्छी कविता नीचे वाली लगी..आधे-आधे हम दोनों और एक qजदगी ... इस कविता के ढेर बधाइयां...
ReplyDeleteकाजल, सफेदी व समय छीन कर ले गया। सुन्दर भाव।
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट .आभार !
ReplyDeleteमहाष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !!
नवीन कविता में भाव प्रधानता इतनी है कि शब्द काफी कम और कविता पर भारी
ReplyDeleteलग रहे हैं... बिम्ब बेहद सघन है तुमने पाठक के लिए जरा भी स्पेस नहीं
छोडी है.. लगता है मानों केदारनाथ अग्रवाल की कोई कविता पढ रहा हूं.. पर
कुछ अंतर है.. सच बताउं तो एक सामान्य पाठक की तरह मैं कुछ पकड ही नही
पाया.. सफेद के बिम्ब के साथ तुम क्या कहना चाहते हो मैं नहीं समझ पाया
हूं.. हां शायद कोई लडकी है.. बहरहाल, तुम्हारी अब तक कि सबसे अच्छी
कविता नीचे वाली लगी..आधे-आधे हम दोनों और एक qजदगी ... इस कविता पर ढेर
बधाइयां... सोनू उपाध्याय
बहुत दिनों बाद!
ReplyDeleteयार ये कविता एकदम अपने मूड की है। ...पानी टपक ही न सका। बूँदें किसी के काजल में घुल कर रह गईं।
अमाँ फालतू के शब्द भी भरवाते हो और मॉडरेशन भी लगाए हो। खुद तो इतने कम शब्दों में लिखते हो!
ReplyDeleteआगे से टिपियाना बन्द।