कमरे में छाई धुंध
जो निर्मल वर्मा
प्राग से समेटकर लाये थे
रायना की अंतहीन रहस्यमयता को
अपनी कोख में बसाकर
बेहताश नशे में
भटकती रहती है वे दिन
कमरे में
टेबल पर एक चिथड़ा सुख है
सुख...!
ना घटता है ना बढ़ता है
दिन और रात
असामान्य तरीके से समान है
धुंध से उठती धून
हर वक़्त - हमेशा
बिस्तर पर
सिरहाने रखी रहती है
मै जानबूझकर उसे वहाँ से उठाता नहीं
मै नींद मै भी देख सकूँ
चलती हुई दुनिया
पीछे छुटता हुआ आज
शब्द और स्मृति
हिस्सा है
जीवन और मृत्यु का
जीवन और मृत्यु की तरह
सब कुछ निर्मल है
निर्मल जी को नमन.. सच में सब कुछ निर्मल है..
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