केबिन मै चाय के दो कप
आज सुबह केबिन में
एक जिन्दगी
अचानक घुस आई.
कुछ पल ठहरीं
और एक युग रिस गया.
दरवाजों को छुआ
मशीनों को जिंदा किया.
कुछ फर्नीचर कविताओं में तब्दिल हुआ
कुछ कहानियों में.
और कांच के टुकड़े किस्सों में
कुछ सामान अभी भी
मुँह बनाएँ केबिन को घूर रहा था
झुले की चरचराहट
और किलकारियों के बीच
असंख्य साँसे बिखर पड़ी.
एक आवाज प्रसव पीड़ा की तरह
मैंने देखा चाय के दो खाली कप
प्यार में थे
वाह्…………॥बेहद खूबसूरत अन्दाज़ -ए-बयाँ।
ReplyDeleteवाह ।
ReplyDeleteकविता हमारे मनोदशा का चित्रण करती प्रतीत होती है।
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