बहुत व्यर्थ आदमी हूं. खबरें लिखता हूं. अखबार पढ़ता हूं. कुछ नहीं आता कविताएं लिखने के सिवाए. जहां- तहां कविताओं से रूमानी ख्याल बिखेरता रहता हूं. आत्मा का गिरेबां खुला रखता हूं. इश्क और अदावत के लिए गिरेबां बंद कर रखा है. बाल नहीं बनाता. उदास रहता हूं. बोर होता हूं तो टीवी देखता हूं. टीवी देखते हुए झपकी ले लेता हूं. अंत में संगीत पर लौट आता हूं. अंत के अंत में किताबों पर. शाम होती है तो एक कप कॉफी पी लेता हूं. ज्यादा शाम होने पर व्हिस्की. दोस्त नहीं रहे. अब बनते भी नहीं. प्यार भी नहीं होता. ज़िंदगी में दिलचस्पियां कम- उदासीनता ज्यादा है. रात में कभी सोता हूं. कभी जागता हूं. कभी सुबह जल्दी उठता हूं, कभी देर तलक सोता रहता हूं. कई बार किताबें पढ़ता हूं. कई बार उन्हें बेवजह देखता रहता हूं. कुछ किताबों को पूरी पढ़ता हूं. कुछ को अधूरी छोड़ देता हूं. कुछ अच्छा कवि कहते हैं. कुछ खराब. कुछ लोगों के लिए अच्छा आदमी हूं. कुछ के लिए खराब. कभी सोचता हूं जिंदगी को संवारना है. कभी उसे यूं ही छोड़ देता हूं.
Thursday, November 21, 2024
बहुत व्यर्थ आदमी हूं
बहुत व्यर्थ आदमी हूं. खबरें लिखता हूं. अखबार पढ़ता हूं. कुछ नहीं आता कविताएं लिखने के सिवाए. जहां- तहां कविताओं से रूमानी ख्याल बिखेरता रहता हूं. आत्मा का गिरेबां खुला रखता हूं. इश्क और अदावत के लिए गिरेबां बंद कर रखा है. बाल नहीं बनाता. उदास रहता हूं. बोर होता हूं तो टीवी देखता हूं. टीवी देखते हुए झपकी ले लेता हूं. अंत में संगीत पर लौट आता हूं. अंत के अंत में किताबों पर. शाम होती है तो एक कप कॉफी पी लेता हूं. ज्यादा शाम होने पर व्हिस्की. दोस्त नहीं रहे. अब बनते भी नहीं. प्यार भी नहीं होता. ज़िंदगी में दिलचस्पियां कम- उदासीनता ज्यादा है. रात में कभी सोता हूं. कभी जागता हूं. कभी सुबह जल्दी उठता हूं, कभी देर तलक सोता रहता हूं. कई बार किताबें पढ़ता हूं. कई बार उन्हें बेवजह देखता रहता हूं. कुछ किताबों को पूरी पढ़ता हूं. कुछ को अधूरी छोड़ देता हूं. कुछ अच्छा कवि कहते हैं. कुछ खराब. कुछ लोगों के लिए अच्छा आदमी हूं. कुछ के लिए खराब. कभी सोचता हूं जिंदगी को संवारना है. कभी उसे यूं ही छोड़ देता हूं.
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