Thursday, June 14, 2018

आत्महत्याएं थ्रिल हैं !

आत्महत्याएं थ्रिल हैं !

कि लोग फिदा हो जाते हैं, और संत भी। महाराज भी,

कुछ मौतें ग्रेस होती हैं, कुछ निजात होती हैं। कुछ सनसनीखेज। ग्रेस से भरी मौतें अपने पीछे सबद छोड़ जाती है। एक गहरा ठंडा, रुका हुआ समय। निजात से भरी मौतें अपने पीछे झूठे विलाप छोड़ती हैं। वे मुक्ति का अहसास करा जाती हैं, जो लोग तंग रहते हैं, वे ऐसी निजात बख्शने वाली मौतों के बाद मुक्त हो जाते हैं, लेकिन उनके पास एक छद्म सुख रह जाता है।

कुछ मौतें सनसनीखेज होती हैं। एक साथ हजारों फ्लैश चमक जाते हैं। लाइट्स एक दूसरे में गलकर बह जाती हैं। एक अजीब सा सायरन हवा में उड़कर गुम हो जाता हैं। एक साथ हजारों– लाखों आंखें अचंभित होकर चमक जाती हैं। शून्य पर टिक जाती हैं एक खौफनाक नजर। हजारों बयान वायरल हो जाते हैं। गडमड बयान। झूठे- सच्चे और बोखलाए हुए बयान।

आत्महत्याएं थ्रिल हैं। उन लोगों के लिए जो जिंदा हैं। मरने वाले का थ्रिल उसी क्षण खत्म हो जाता है। उसी क्षण। जिस समय फंदा लगता है। एक योजनाबद्ध और औचक निर्णय के बीच झूल रहे विचार के हाथ जिस वक्त कांप जाते होंगे। एक निर्णय थरथरा जाता होगा।- और फिर दम तोड़ देता होगा। जिंदगी के लिए नहीं, मरने के लिए एक आखिरी एफर्ट।

अब अंत में हमारे पास इस तरफ एक थ्रिल है, एक मौत का थ्रिल। - और उस तरफ एक गर्म- गर्म नाल और बारुद की गंध के साथ कमरे में तैरता हुआ धुंआ।

दुनिया एक ही समय में एक साथ दो छोर पर खड़ी नजर आती है। मृत्यु और जीवन।

हम सब के लिए। इस तरफ आत्महत्याएं थ्रिल हैं। एक रोमांच और हवा में तैरती हुई एक सनसनीखेज खबर। 

कुछ तो इनवाइट करती होंगी आत्महत्याएं। उसके बुलावे में क्या टेम्पटेशन हो सकता है। कौन बुलाता है। किसको बुलाता है। सवालों के जवाब हैं। जवाबों के सवाल हैं। कोई गंध तो आती नहीं उस तरफ से। कोई तिल तो नजर आता नहीं उसके गाल पर। क्या आंखें खूबसुरत होंगी उसकी। या झूलती होंगी घटाएं उसके कंधों पर कि लोग फिदा हो जाते हैं, और संत भी। महाराज भी।

एक सुसाइड नोट

हवा में उड़ रहा है


थ्रिल में बदलकर

एक कविता बनकर

क्या टेम्पटेशन है

आत्महत्या का एक नोट


पढ़ना चाहते हैं

जिसे सब छूना चाहते हैं


जिस पर लिख गया है


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