Friday, March 26, 2010

रंग ओ कूची वाला यात्री

मकबूल फ़िदा हुसैन के कुछ ब्रश और केनवास देश में बचे थे जिन्हें अब क़तर भेज दिया जाना चाहिए और वो सारी पेंटिंग्स भी जो देश के कई बड़े घरानों के ड्राइंग और बैडरूम्स में टंगी है. हुसैन की भारतीय नागरिकता तो उसी वक़्त ख़त्म हो गई थी जब कुछ हिपोक्रिट लोगों ने उन्हें बनिश्मेंट का फरमान सुना दिया था, क़तर की नागरिकता स्वीकार कर तो उन्होंने भारत में अपनी आखिरी पेंटिंग पर आखिरी पैच लगाया है.
जहाँ तक देश में कलाकारों के आखिरी दिनों के ब्यौर का सवाल है तो भारत की स्थिति कई मायनों में पाकिस्तान से कोई ज्यादा अच्छी नहीं रही है. दोनों देशों ने वक़्त-बा-वक़्त अपने-अपने कलाकारों को उनके आखिरी दिनों में बदहाली और बेबसी में जीने पर मजबूर किया है. उस्ताद बिस्मिल्ला खां की शहनाई के सुरों की गहराईयों और ऊँचाइयों से हर हिन्दुस्तानी वाकिफ है और जिंदगी भर की उनकी मुफलिसी और फाकों से भी कोई ना-वाकिफ नहीं है. इक्कीस अगस्त को उनकी चौथी बरसी पर शायद हम बिस्मिल्ला को याद करें.
सीमा पार भी कलाकारों के बे इन्तहा दर्द का कोई अंत नहीं है. पाकिस्तानी सरकार इतनी भी काबिल नहीं कि अपने बेश कीमती ग़ज़ल फनकार उस्ताद मेहदीं हसन के लिए कुछ लाख रूपये खर्च कर उन्हें फेफड़ों की बीमारी से बचा सके.शायद पाकिस्तान ने अपना सारा धन अमेरिका से गोला बारूद खरीदने में लगा दिया है. आगा खां यूनिवर्सिटी अस्पताल से मेहदीं हसन को सिर्फ इसलिए डिसचार्ज करवाना पड़ा था कि अब उनके कुनबे के पास इलाज के पैसे नहीं बचे थे. लता मंगेशकर ने खां साहब की आवाज को खुदा की आवाज बताया था और उनके इलाज के लिए सारा खर्च उठाने के लिए उन्हें खबर भेजी थी. सच है ... एक कलाकार ही दुसरे कलाकार का दर्द जी सकता है, बशर्ते कलाकार सच्चा हो. जिस गज़ल गायक ने दोनों देशों के लाखों करोड़ों लोगों की जिंदगी में ताउम्र सुर फूंकें उसकी सांस आज पाई पाई को मोहताज है. पता नहीं मेहदीं हसन कैसे पाकिस्तान की उस आबो-हवा में सांस ले रहें है.
हुसैन के साथ भी तकरीबन वही सब हुआ जो दुसरे कलाकारों के साथ हुआ. हिन्दू देवी-देवताओं की विवादस्पद पेंटिंग्स बनाने के कारण हुसैन को एक्सजाइल के लिए मजबूर किया गया. देश में नहीं घुसने देने की धमकियाँ दीं, पेंटिंग्स जलाई गई, एक महान कलाकार के पुतलों को सडकों पर फूंका गया .
हुसैन ने तकरीबन सारी जिन्दगी देश में बिताई. अपनी जिंदगी के 90 साल भारत में गुजारकर सेकड़ों केनवास रंगे और भारत के साथ-साथ दुनिया को भी रंगों के मायने सीखाये. सन 2007 से दुबई और लन्दन में खाक छानी. अब क़तर ने उन्हें अपनी नागरिकता देने का एलान किया है जिसके लिए हुसैन ने कोई गुहार नहीं लगाई थी, ना ही हुसैन किसी और देश की शरण के लिए मोहताज है. एक कलाकार को सांस लेने के लिए किसी देश की नागरिकता की जरुरत नहीं. लेकिन फिर भी उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है, अगर जिन्दा रहने की यही शर्त है तो यही सही...
अभी कुछ दिनों पहले ही हुसैन ने अपना भारतीय पासपोर्ट भी वापस कर दिया है हालाँकि पासपोर्ट वापस लौटने से पहले हुसैन को यह भी ख्याल करना चाहिए था कि शाहरूख खान और आमिर खान भी हिंदुस्तान में रह रहें है, उन्हें देश में उतना डर नहीं लगा जितना हुसैन को लगा.
खैर, हुसैन को यह हक़ है की वो अपनी बाकी जिन्दगी कहाँ गुजरे. एक कूची और कुछ रंगों के साथ नंगे पैर दुनिया नापने वाला 95  साल का बूढ़ा किसी देश की नागरिकता का मोहताज नहीं है. ना हिंदुस्तान और ना ही क़तर. वो हमारी या आपकी दो कोडी के लिए रंगों से नहीं खेलता है. फिल्मों के पोस्टर और कलाकारों के केनवास सडकों पर फूंककर खुश होने वाले जिस दिन हुसैन की कूची और उसके रंग का अर्थ समझ जायेंगे उस दिन वे खुद को किसी देश की नागरिकता के लायक नहीं समझेंगे. हुसैन तो हवा है जिसे किसी वतन की जरुरत नहीं. रंग ओ कूची वाले यात्री को वतन की जरुरत नहीं

2 comments:

  1. रंग और चित्र की यात्रा कभी नही रुकती, हमेशा चलती रहती है।

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  2. Navin baboo aapke. kalakaron ke kdra karne wale.. alekh par sadhuwad.. par kuchh aapttiyan hain... husian sahab aur unaki painting ko lekar.. kuchh kahunga. nahi behatar hoga aap 21 march ke janstta me taslima ka un par likha gaya lekh padhin.. mera dawa hai. unake desh nikale par aapka.. dukha kafur aur afsos hawa ho jayega.. husuin.. se ek samay me lohiya ne hadrabad me ramayan aur mahabhart ke adhar par kuchh hidu devi devtaon ke chitra banaye the.. bas usake bad aaj tak.unse.. kisi ne muh uthakar bhi hidu devtaon ki painting nahi banwai.. taslima yya.. un par to pichle sal rajkishore ne ek vivadit article likhte hui puchha tha.. ek kattar muslman aur isalam ko manne wale.. is shkhs ne.. sarswati aur laksh me sahit durga kali, aur bharat maat ke nagn chitra janbujhakar. kyon banaye the... vaise.. article ki bhasha achha hai. par .. khabarin jyada hain.. lekin.. phir bhi ye kafi achha hai.. badhaiyan...

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