तालाब का किनारा
धुँए सी
सफ़ेद लहरें
कतारों में
हरिकेन सुलग रहे है
रोटी की महक
और मेरे सिगरेट के
कश ने
वक्त को जिंदगी में बदल दिया है
में जिंदगी की सबसे हसींन साँस ले रहा हूँ
मानो वक्त को उँगलियों पर लपेट लिया हो मैने
गाँव की लड़कियां अब औरते हो गई है
कुछ अभी भी मेरी आंखों में पिघल रही है
मेरा दोस्त मुर्गा सेक रहा है
और में जिंदगी चख रहा हूँ
एक कब्रिस्तान मे घर मिल रहा हे
ReplyDeleteजिसमे तहखानो से तहख़ाने लगे हे
अब नई तहज़ीब के पेशनजार हम
आदमी को भुन कर खाने लगे हे!!
दुष्यंत कुमार