Wednesday, April 3, 2013

मौत ! तुम शाम के मुहाने पर बैठी हो

मेरे दुख में शामिल हो मेरी ही इच्छा 
उदासी भी आए तो कहने पर
मेरी मर्जी के विरूद्ध 
तुम रुला ना सकों मुझे   

हंसू तो शामिल हो हाँ मेरी 
चलूं तो अधिकार हो रास्ते पर 

कि अब मुड सके ना घुटने उलटी तरफ 

ख़ुशी खड़ी रहे दरवाजे पर 
गुब्बारों की शक्ल में
 
बच्चे संगीत सीखें 
दोहरायें पुरखों की कविताएँ  
और सीखें पेड़ों को देखना  
पहाड़ों पर चढ़ना

देख सकूँ मैं अपनी ही साँसों को 
आते हुए - जाते हुए

देह का बोझ हल्का हो 
इतना कि लपेट सकूँ आत्मा के इर्द -गिर्द 

रद्द कर दूँ अपने दिमाग का सौदा
भले बयाना ही डूब जाए 

खरीद लूँ बिकी हुई उँगलियाँ वापस
जो दम तोडती है की- बोर्ड पर 

ये मेरी जिन्दगी है 
मैंने जीने का फैसला किया है 

मौत ! तुम शाम के मुहाने पर बैठी हो
मैं इकट्ठा करूँ लकड़ियाँ .

9 comments:

  1. nice one... deh me udaan hai, jivan bhi qayam hai...

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  2. खरीद लूँ बिकी हुई उँगलियाँ वापस
    जो दम तोडती है की- बोर्ड पर
    ‘पूरा दर्द समाया है इन शब्दों में, बहुत खूब

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  3. रद्द कर दूँ अपने दिमाग का सौदा
    भले बयाना ही डूब जाए ... बहुत अच्छा...बहुत खूब

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  4. बस एक पल तेरा, सारा जीवन मेरा।

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  5. लाजवाब ! सुन्दर पोस्ट लिखी आपने | पढ़ने पर आनंद की अनुभूति हुई | आभार |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  6. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  7. बहुत गहरा, बहुत उम्दा।

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  8. बहुत गहरा, बहुत उम्दा।

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